कभी कभी सोचता हूं....
कि अगर चाँद ना होता,
तो तेरी खूबसूरती को कैसे बयां करता...
अगर सागर ना होता,
तो तेरी आँखों की गहराइयों में कैसे डूबता...
अगर सूरज ना होता,
तो तेरी झुल्फों की छाव में कैसे छिपता...
अगर ये काली घटा ना होती,
तो तेरे साथ बारिश में कैसे भीगता...
अगर ये हवाएं ना होती,
तो तेरे जिस्म की खुशबू में कैसे खोता...
अगर तुम्हारी ये मुकुराहट ना होती,
तो मैं हर दिन तुम्ही पर कैसे मरता...
अगर ये सर्दियों की वादियां ना होती,
तो तुम्हारी बाहों की गरमाहट का आदि कैसे होता।
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