खोई इंसानियत, मुझमें फिर भी एक इंसान बाकी है
थोड़ा सा ही सहीं दिल में अब भी ईमान बाकी है ।
जो लेने पर तुला है मेरी जान जमाना ये ,
खुदा ही जाने मुझमें कितनी जान बाकी है ।
मंजिल रूठी है और रास्ते हो गए हैं खफा..
तै करने को अब भी सपनों का जहां बाकी है ।
ये आंसू तो भर रहें हैं दर्द इस दिल का मगर
फिर भी सीने में जख्मों का निशान बाकी है ।
आलम ये है की चुब रही है हर एक सांस
सजा ये की रिहाई को कुछ पल और हां! बाकी है
यूं हार मान कर बैठने से हंस पड़ेगी फिर मौत भी
कहो होंसलों से ज़िंदगी के और इम्तेहान बाकी है।
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