Brahmasrm Ramesh   (Brahmasrm RC)
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My body my Temple,
Myself my God Sample.
#wholeiswell
#ध्यानहीसमाधान
#brahmasrm
Joined 20 May 2018


My body my Temple,
Myself my God Sample.
#wholeiswell
#ध्यानहीसमाधान
#brahmasrm
Joined 20 May 2018
AN HOUR AGO

ऊँ धंधे के लिए नहीं, स्वयं से एकान्त में उच्चारण और उसे स्वयं से ही सुनने के लिए है ताकि भीतर का राग जग सके, विचार शून्यता, ध्यान, मन का विश्राम, अचेतन मन यानि कूड़े के ढेर से मुक्ति।
जीवन के रंग,
अह्सास-साधना के संग।

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YESTERDAY AT 14:06

एकाग्रता बढ़ाने का एक बेहतरीन तरीका यह भी है ," स्वयं के शरीर से जुड़े स्वाभाविक अह्सास की भाषा सीखी जाए, भूख प्यास स्पर्श दर्द और श्वांस का सत्संग किया जाए "। ध्यान का एक अर्थ यह भी है," एकाग्रता और प्रकृति का सम्मान "।
जीवन के रंग,
अह्सास-साधना के संग।

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YESTERDAY AT 10:37

सम्मान अर्थात समान मान,
यह दृष्टीकोण रखते हुए जब भी मनुष्य दुनिया में कोई भी व्यवहार करता है तब कहा जाता है कि वह सम्मानीय व्यवहार है।
जीवन के रंग,
अह्सास-साधना के संग।

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27 JUL AT 14:38

जब मनुष्य की भीतर के अंगों की सम्वेदनशीलता कम हो जाती है, भीतर का अह्सास कम हो जाता है, भूख प्यास दर्द स्पर्श और श्वांस के स्वाभाविक राग का का अह्सास कम हो जाता है तब मनुष्य को स्वयं के भीतरी अंगो और तंत्रिका तंत्र के बीमार, शिथिल और अक्रियशील होने का भी अह्सास नहीं हो पाता है इसीलिए दुर्घटना और रोग के गंभीर रूप धारण होने पर भी तथाकथित स्वस्थ्य होने का भ्रम बना रहता है।जागो!अभी नहीं तो कभी नहीं।
जीवन के रंग,
अह्सास-साधना के संग।

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24 JUL AT 4:36

जिनका मस्तिष्क विचारों की दृष्टि से ज्यादा सक्रिय है अगर उनका मस्तिष्क शारीरिक प्रत्यक्ष अह्सास (भूख, प्यास, दर्द, स्पर्श और श्वांस) की दृष्टि से भी सक्रीय है तो निश्चित ही उनकी जीवन-यात्रा शानदार और प्रेमपूर्ण होती है।
जीवन के रंग,
अह्सास-साधना के संग।

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24 JUL AT 4:31

होश का अर्थ है मनुष्य के द्वारा जो भी चिन्तन और व्यवहार हो रहा है उसे उसका पता है। ध्यान का अर्थ है एकाग्रता और जीवन का सम्मान। स्वस्थ्य एवं प्रसन्नचित्त रहने की दृष्टि से होश और ध्यान सर्वाधिक महत्वपूर्ण अवस्थाएं हैं।
आनंद की खोज,
अह्सास-साधना की राह।

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22 JUL AT 15:40

हर खिला हुआ फूल सुन्दर होता है, खिलो प्रसन्न रहो।
जीवन के रंग,
अह्सास-साधना के संग।

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22 JUL AT 7:24

द्वंदात्मक प्रवृत्ति की धरती की प्रकृति के दिन-रात जैसे दिन (प्रकाश-अंधकार) के दो भाग होते हैं उसी तरह से मनुष्य के लिए धर्म के भी दो भाग होते हैं जोड़ने वाला धर्म (अध्यात्म, आकाश का धर्म) और तोड़ने वाला धर्म (धरती का धर्म), काम वाला धर्म (धर्म) और धंधे वाला धर्म (अधर्म)। सही विद्या (विद्या-शिक्षा) शिक्षा से विद्या की ओर, अधर्म से धर्म की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाली होती है, असतो मा सद्गमय। होशपूर्ण होकर ही इस रहस्य से रूबरू हुआ जा सकता है,
ध्यान एकमात्र समाधान।
जीवन के रंग,
अह्सास-साधना के संग।

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21 JUL AT 13:49

जो मनुष्य शारीरिक खान-पान को वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से संयमित करने में सफल हो जाते हैं उनके स्वयं के मन की विकृत विचारधारा को नियंत्रित करने में सफल होने की संभावना प्रबल हो जाती है, जीवन को स्वस्थ्य और आनंदित करने में भी।
जीवन के रंग,
अह्सास-साधना के संग।

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21 JUL AT 6:50

ना पक्ष में जिओ ना विपक्ष में जिओ, स्वस्थ्य रहना हो तो तटस्थ होकर जिओ। अच्छा-बुरा कुछ भी ना कहकर स्वयं के विवेक से होश पूर्वक जिओ, यहाँ कुछ भी स्थिर नहीं ,परिवर्तन शाश्वत सत्य है।
जीवन के रंग,
अह्सास-साधना के संग।

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