समस्याएं समाधान होती हैं अगर स्वयं के व्यवहार की भूमिका खोजी जाए।
जीवन के रंग,
अह्सास-साधना के संग।-
उत्तम स्वास्थ्य का राज़ है, "बिना कड़ी भूख लगे कुछ भी नहीं खाना "। भूख शारीरिक घड़ी के हिसाब से लगती है, आज कब सम्भावित इसका निर्धारण इस बात से भी तय होता है कि बीते कल किस समय, किस तरह का और किस तरीके से भोजन किया गया था, यही भूख का भाग्य है,जागते रहिए, सावधान रहिए, शराब पी कर सम्भल कर चलने का प्रयास कितना सफल होगा इसे स्मृति में रखिए।
जीवन के रंग,
अह्सास-साधना के संग।-
स्वयं के स्वास्थ्य को स्वयं की जिम्मेदारी पर सक्रियता के साथ उत्तम बनाए रखने का प्रयास कीजिए वर्ना शातिर-व्यक्तित्व इमोशनल ब्लैकमेलिंग का इस्तेमाल कर बर्बादी के कगार तक पहुंचाने में नहीं चूकेंगे।
आनंद की खोज,
अह्सास-साधना की राह।-
धरती पर मनुष्य के व्यवहार की दृष्टि से उसके द्वारा किए गए शारीरिक कार्य में मन के रूप में ऊर्जा का अत्यधिक प्रभाव होता है। नियन्त्रित मन-ऊर्जा से सुव्यवस्थित एवं क्रांतिकारी महान कार्य संपन्न होते हैं लेकिन अगर मन-ऊर्जा की दृष्टि व्यापक एवं मानवीय है तो जीवन-चर्या आनंद का सागर और दृष्टि संकीर्ण होने पर सुख-दुख का पेंडुलम तथा अत्यधिक संकीर्ण होने की स्थिति में नारकीय बन जाती है। ध्यान के प्रयोग व्यापक दृष्टिकोण एवं मानवीयता पैदा करते हैं। हर समस्या का एक ही समाधान है ध्यान, मन का को विश्राम देने की कला, यह मानवीय दृष्टीकोण हेतु बुनियादी साधना है।
जीवन के रंग,
अह्सास-साधना के संग।-
सावधान! एआई जवान हो रहा है, जिनमें विज्ञान और अध्यात्म की बुनियादी समझ और उसके साथ बने रहने के निरंतर प्रयास की कमी है, उन्हें पागलपन के दौर से भी गुजरना पड़ सकता है। जागो!अभी नहीं तो कभी नहीं।
जीवन के रंग,
अह्सास-साधना के संग।-
भेद राम और राम में,
कृष्ण कृष्ण में भेद।
भेद अगर मिट जाए तो,
राम कृष्ण हैं एक।।
भेद स्वयं की जानकारी, स्वयं का अनुभव और तटस्थ मन:स्थिति से आये दर्शन का।
जीवन के रंग,
अह्सास-साधना के संग।-
जिन्होंने पॉजिटिविटी और नेगेटिविटी व्यवहार में संतुलन बनाने की कला नहीं सीखी उनकी पॉजिटिविटी और नेगेटिविटी पेंडुलम गति वाली ही होगी स्वयं के नियन्त्रण से दूर समय बीतने के साथ-साथ एक के बाद दूसरी अवस्था आशा-निराशा की तरह, दिन-रात की तरह, सावधान! जागो! अभी नहीं तो कभी नहीं। संतुलन ध्यान अर्थात मन को विश्राम देने की कला, की परिणति है।
जीवन के रंग,
अह्सास-साधना के संग।-
कथा, प्रवचन की बात सही लेकिन
बेहद अधूरी रह गई, इश्क़ की व्याख्या में प्रेम की धारा ही बह गई। मौन के अभाव में भीतर का राग ही स्वरित नहीं होगा, बाहर का शोर ही चहुमुख पुलकित होगा, प्रवचन धन्धा बन जाएगा, रोज रोज करके सदा दुकान ही चलाएगा।
मौन अर्थात ध्यान अर्थात मस्तिष्क को शून्य करने की कला जब तक नहीं आएगी, अस्तित्व से इश्क की धारा कहाँ बह पाएगी।
जीवन के रंग,
अह्सास-साधना के संग।-
मन शरीर का ही एक सूक्ष्म हिस्सा है और आत्मा अस्तित्व का तथा परमात्मा ब्रह्मांड का। धरती पर शारीरिक कर्म के माध्यम से स्वयं के स्वास्थ्य को बेहतरीन बनाए रखने का प्राथमिक प्रयास ही अस्तित्व को शानदार बनाने और परमात्मा की उपासना करने हेतु आनंदकारी व्यवहार है।
जिओ तो जानो, स्वयं को पहचानो।
जीवन के रंग,
अह्सास-साधना के संग।-
आंखें
मनुष्य का सर्वाधिक सम्वेदनशील अंग है, तनावग्रस्त मनुष्य की आंखें तनी हुई होती हैं,आँखों के तनाव को ढीले अर्थात शिथिल करने से आसानी से मानसिक तनाव से मुक्त हुआ जा सकता है।
तनाव मुक्त आंखें,तनाव मुक्त जीवन-चर्या।
जीवन के रंग,
अह्सास-साधना के संग।-