आज फिर लिख रहा हूं मैं ,अपने खालीपन से रूबरू हो रहा हूं में ,जब तक शब्द लेंगे अपना स्वरूप ..,अपने अकेलेपन से फिर घिर चुका रहूंगा मैं ,
यह फिर धीरे धीरे भारीपन में बदलेगा ,और उतनी ही फिर मेरी पुरानी मोहब्बत असीमित नफरत में बदलेगी ।
भारीपन घनघोर काला अंधेरा मुझमें फिर अपना आशियाना बनाएगा ।
और फिर धीरे धीरे तेरी यादों का धुआं छल्ले से निकल अंदर समाता जाएगा |
सही गलत अब मायने नही रखता है ,जिंदा हूं अपने में विस्तार हुआ हूं पर ,रहने दो अबलगता है मैं शायद तुम्हारे लिए अब कुछ काम के नहीं लगता । अब मेरे पास भी तुम्हारे लिए कोई जगह नही ,
क्युकी अब बस मेरे अंदर तो एक अधूरापन बसता है ,
एक जमाना हुआ करता था जब एक नजर में अपने में डूबा लेते थे और मै पूरा हो जाता था ,
नाउम्मीद करता हूं किसी के लौट के आने की अब मैं ,परखा है मैंने खुदगर्ज लोगो कोे,उनके रिश्ते तोड़ने की अदाएं भी बड़ी जबरदस्त होती है ,जो रोज़ बिना हमारी आवाज सुने सोया भी ना करते थे ,आज हमारी चीख सुनके भी अनसुना कर देती है
काश इंसानों को समझना ख़ुदा पहले सीखा देता ,तो जो पल में सारी जिंदगी बसा देने का एहसास करा देते थे , वो एक पल में अब सारी ज़िन्दगी अकेला छोड़ के ना जा पाते ।
और फिर आज में तुमसे नफरत भी क्यों ना करू ,
फिर एक आस जिंदा क्यू ना करू की मनाने ही सही एक बार आओगे और मै फिर तुम्हारी आंखों में फिर डूब सकूंगा
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