Bhavik Jain   (Dhaaga)
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Joined 15 April 2017


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Joined 15 April 2017
26 JAN 2022 AT 11:48

Saal mein do baar aata ye din hai
Jo yaad dilata Saheedo ka rin hai

Ab aate nahi, saath milke dhwajarohan karne
Kyuki ab Aaram, khelne aur ghumne ka din hai— % &

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2 DEC 2021 AT 20:35

तिरे एहसास में डूबा हुआ मैं
कभी सहरा कभी दरिया हुआ मैं

सिराज फ़ैसल ख़ान

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17 JUL 2021 AT 22:46

हर बार शब्दों की ज़रुरत नहीं होती है
कभी कभी बाहों में भर लेने से सासें हलकी होती है

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16 JUL 2021 AT 20:51

सुबह सुबह सब याद था
दिन ढलते ढलते सब भूल गया

कर्म धर्म और सब कुछ
मेरे संग जल के धुआँ हो गए

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15 JUL 2021 AT 21:14

मौत से ज्यादा दर्द, क्यों ये हार देती है
कोई इन बच्चो को समझाओ
के ज़िन्दगी सब कुछ बदलने के मौके हज़ार देती है

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14 JUL 2021 AT 21:06

है सब हमारे पास फिर भी नज़र जो न है उसपे जाती है

शुक्रगुजार होना चाहिए दुआओ में हमें लेकिन झोली हर बार फ़ैल ही जाती है

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13 JUL 2021 AT 21:20

हाथों में जाम लिए
इश्क़ का वो लुफ्त उठा रहे है

कंधो पे दर्द लिए
रिश्तो का बोझ उठा रहे है

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12 JUL 2021 AT 20:09

सूरज के संग जो दौड़ शुरू होती है
वो चाँद के आते ही रुक नहीं जाती

यूँही बस चलती जाती है ज़िन्दगी
एक पल खुदके संग बसर नहीं होती

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10 JUL 2021 AT 23:08

जो गुज़रा कल है वो अँधेरे में है
जो आनेवाला कल है वो अँधेरे में है
सिर्फ अपना आज ही रौशनी में है

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9 JUL 2021 AT 20:47

सवालो से टकराया तो पता चला
मैं अँधेरे में जी रहा था

रोशनी तो सरहद के उस पार थी
मैं उन हदो को दुनिया का अंत समज रहा था

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