Afzal Khan   (✍azkjhs)
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🎂 20 Sep
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HOOKAH
Joined 14 April 2018


🎂 20 Sep
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HOOKAH
Joined 14 April 2018
7 OCT 2020 AT 1:33

ये मज़हब की दीवारें  ना होती तो क्या क्या होता
तुम  मैं   हम  फिर  ना  जाने क्या क्या होता
✍azkjhs

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1 JUL 2020 AT 1:17

आप से तुम के हम हो जायेंगे
फिर कोई अज़नबी हम हो जायेंगे

मसअला तेरे मेरे दरमियां रहेगा
ना कभी तुम ना हम हो जायेंगे

मुद्दतों रोशन रहेगा आफताब यहां
फिर एक रोज़ सब तुम हम हो जायेंगे

शब-ए-गम़ जो तेरे जाते काटी हमने
अश्क के दरिया में डूबकर हम हो जायेंगे

✍azkjhs

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22 JUN 2020 AT 1:23

तन्हाईयों में मैं उस से लिपट कर
बहुत रोया
वो शख़्स जो मेरे अन्दर है मैं उस से लिपट कर बहुत रोया

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3 JUN 2020 AT 1:52

दिल-ए-यार को एक रोज़ जुदा कर
देगे हम
डोली सजाएँगे रक़ीब संग विदा कर
देगे हम

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15 MAY 2020 AT 17:37

हाँ इबादत-ए-इश्क़ है खुदा के लिए
ऐ-आदम तू भी तो है खुदा के लिए

जम़ाने से ये सिलसिला रहा इब्न-ए-आदम
तू खुद को कत्ल करता रहा खुदा के लिए

बाम-ए-फ़लक से देखता रहा वो जो
दरिया लहू का बहाया गया खुदा के लिए

तेरे तरकश में तीर-ए-मोहब्बत भी है
चला जम़ाने पर इसको खुदा के लिए
✍azkjhs

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19 APR 2020 AT 2:45

मंजिल का पता है रास्तों से बेख़बर हूं मैं
शीशा मेरे सामने है खुद से बेख़बर हूं मैं

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26 MAR 2020 AT 23:20

दौर-ए-जहाँ में अब क़ासिद ही नहीं
तेरी ख़बर मुझ तक अब पहुंचाएगा कौन ।
✍azkjhs

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18 DEC 2019 AT 2:12

तख़्त पर जो तख़्तनशी है फिऱौन
उसको डूबाने के लिए उठ
जम़ाने में अभी जिंदा है मूसा
यह बताने के लिए उठ

ये बंदूक ये लाठीयाँ ये यह सब खिलौनें है
ये जग़-ए-बद़र है तो इसे जंग-ए-कर्बला बताने के लिए उठ

ख़िश्त-बा-ख़िश्त जो मुल्क़ बनाया है हमने
है इख़्तियार इस पर हमारा भी यह बताने
के लिए उठ

हां हवाओं में शोर-ऐ-इंक़लाब है अभी
हां मुल्क़ में रिफ़ाक़त-ए-मुहब्बत है अभी
यह बताने के लिए उठ

मेरी पेंशानी ने जो चुमी है जमीं
इसी जमीं में ख़ाक-ए-बदन हो जायेंगे हम
यह बताने के लिए उठ

चिंगारी जला दिल-ए-दीवार पर अपने ईमान की तू मुसलमाँ है तो जम़ाने को मुसलमाँ
बताने के लिए उठ

✍azkjhs








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17 DEC 2019 AT 1:43

क़लम मे अब स्हायी नही लहू होना चाहिए
इंक़लाब अब लिखना नहीं है इंक़लाब होना चाहिए ।

✍azkjhs

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10 DEC 2019 AT 12:18

अश्कों को उसके रुख़सारो पर देखा
मैंने खुद को फिर अंगारों पर देखा

नैंनो में उसके फैला काज़ल देखा
मैंने दिल से रूह को निकलते देखा

इस बेबसी में सिगरेट जलाई मैंने
फिर धुएं में उसके अक्स़ को देखा

दुआ में माँगी जिन लबों पे सदा मुस्कुराहटें
आज उस शख्स़ को तन्हा रोते देखा
✍azkjhs

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