23 MAY 2020 AT 6:02

जब मुझे तुम खो चुकोगे

प्रत्यक्ष को पहचानने की भूल तुम कब तक करोगे ?
काल-क्रम में एक दिन तुम सत्य का दर्शन करोगे।।
प्रकृति, गुरु, आध्यात्म, शिक्षा, विज्ञान, वेदों से जुड़ोगे।
पूर्वजों के प्राकृतिक चिह्नों को संग में लेकर जब बढ़ोगे।।
आधुनिकता अर्वाचीनता को साथ लेकर जब चलोगे।
रूप अन्तर्ध्यान होना, तुम मेरा खोना सिमटना कहोगे ।
जब मुझे तुम खो चुकोगे, विश्वास मुझ पर तब करोगे।

अग्नि का मैं ताप, जल का शीत हूँ मैं।
इस जगत् की सृष्टि का असल में बीज हूँ मैं।।
है अटल यह सत्य, मेरे अंग हो तुम।
वेदना समझो, समझ के संग हो तुम।।
वत्स अन्त:ज्योति तेरी कब जलेगी ?
भीड़ से अलग पहचान तेरी कब बनेगी ?
साधना की ज्योति तुममें कब जगेगी ?
है सनातन सत्य मुझ से दूर हो कभी क्या रह सकोगे?
जब मुझे तुम खो चुकोगे, विश्वास मुझ पर तब करोगे ?

लिया जब अवतार मैंने,आर्त्तों की पीड़ हरने।
झेल झंझावात सारे,हर हृदय में प्रेम भरने।
प्राणियों के त्रिविध तापों को सहज ही दूर करने।
कार्य कारण की समझ स्थापना विधि मान्य करने।
पर, नहीं विश्वास, अमर फल स्वाद तुम कैसे चखोगे ?
जब मुझे तुम खो चुकोगे,विश्वास मुझ पर तब करोगे ?

प्रणव ऊँ स्वरूप मेरा, त्रिगुण त्रिविमीय आयाम गोचर।
पंच तत्वों में परस्पर व्याप्त चराचर अनन्त स्वरूप मेरा।।...............

- डॉ० प्रो० ए० के० शैलज