We want JUSTICE.
उस छोटी सी बस्ती में भी, मैं महफूज़ नहीं हूं,
क्या मेरी बस यह गलती है कि मैं नारी हूं, पुरुष नहीं हूं?
तुमने हवस की आग में मुझे राख बना दिया,
अपनी गंदी सोच के चलते मुझे अपनी खुराक बना लिया।।
जो मेरे साथ हुआ, यह दुनिया बस उसका अफसाना सुनेगी,
मुझे मालूम है मेरे घर वालों को सबसे सांत्वना मिलेगी।
लेकिन क्या इससे मेरी मां के चेहरे का नूर-ए-लालिमा वापस आएगी?
क्या इस सबसे मेरे पापा को उनकी लाडली वापस मिल जाएगी?
मेरे भी कुछ अपने थे, जो दरवाजे में खड़े मेरा इंतजार कर रहे थे,
मेरी अधूरी ख्वाहिशें बस पूरी ही होने वाली थी लेकिन कुछ दरिंदे मेरा बलात्कार कर रहे थे।
लिखती-कहते थक गई मैं, तुम कितनों का दम तोड़ोगे?
सहमी सी रहती सब कलियां, हैवानों! दरिंदगी कब छोड़ोगे?
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