Avinash Gautam   (Avi)
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Joined 24 January 2018


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6 MAY 2022 AT 9:52

कहावत नहीं, पूरा का पूरा किस्सा हूँ मैं।
माँ, मैं मैं नहीं, तेरा ही हिस्सा हूँ मैं।

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14 SEP 2021 AT 19:55

दूर किसी परदेश में, किसी गैरों के भेष में,
जब कोई बोलता है,
एक सच होता सुहाना सपना सा लगता है।
ये हमारी 'हिन्दी' है साहेब, बड़ा अपना सा लगता है।

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9 MAY 2021 AT 15:01

जब बेटे के पेट में ना हो दानें तो भूख माँ को भी कहा आती है
जब रोता है बेटा तो आँखें माँ की भी नम हो जाती है।

जब देर रात तक जागे बेटा, तो नींद माँ को भी कहाँ आती है।
बीमार गर होता बेटा तो दवा माँ खुद बन जाती है।

तुम्हारे आगे मेरी कोई परेशानी कहाँ कभी टिक पाती है।
बिना आहट के मै जब भी आता, जाने तू कैसे जान जाती है।

गिनती शायद आती नहीं माँ को, रोटी माँगू एक तो हमेशा दो दे जाती है।
खुद एक रोटी कम खाती, पर हमेशा भर पेट मुझे खिलाती है।

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11 MAR 2021 AT 13:14

वहीं शाश्वत, वहीं सत्य है।
शुरुआत उन्हीं से, वहीं अनन्त है।
चन्द्रमा भृकुटी पर सवार जिनके, गंगा जिनके पाँव पखारे।
दशों दिशाएँ स्तुति गावें, आरती जिनके काल उतरे।
आकार, साकार, निराकार, ऐसे है महाकाल हमारे।

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21 MAY 2020 AT 17:23

कभी बारिश, कभी ओला,
आसमान से गिरता शोला।
लू थपेड़े हो, या बाढ़ के बसेरे हो,
क्यों सब हिस्से मे मेरे हो।
सभी हम पर जमाते अपनी धौंस
क्यों दिखाते अपना गरूर?
क्यों, क्योंकि हूं मैं मजदूर।

जो खुश हूं हो खुश होता कौन?
भूखा हूं तो सुध लेता कौन?
मौत पर राजनीति जोरो से चलती,
पर जिम्मेदारी लेता कौन?
यही है मेरे भाग्य का दस्तूर।
क्या करुँ बेबस और लाचार हूं।
मैं जो ठहरा गरीब मजदूर।
जी हाँ मैं मजदूर।

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23 MAR 2020 AT 18:33

भरी हुई कब्र और ये वीरान सड़कें।
एक अजीब-सा डर है जो सवार है सर पे।
अपने-पराये सब यहीं तो है पर मिल नहीं पाता।
कितना बेबस है ये दिल कुछ कह नहीं पाता।

बुढ़ी माँ कह रहीं मेरा लाल होगा किस हाल में।
कलाई की राखी कह रहीं तू रहना अकेला हरहाल में।
हाय! मुल्क को न जाने किसकी नज़र लग गई।
ममता और करुणा को न जाने कैसे 'कोरोना' लग गई।

कुछ दिन काट लेंगे अकेले, ना दोस्ती कम होगी।
कुछ दिन काट लेंगे तन्हाई के, ना प्यार कम होगा।
माँ की न लाड़ कम होगी, न पापा का प्यार कम होगा।
मिलेंगे दुबारा, फिर वो सब होगा।

कुछ लोग है जो कह रहे, तुम रहो घर मे हम हैं यहाँ।
की तुम जियो और खुश रहो, अपनी जाँ हथेली पे लेके हम चल रहे यहाँ।
लौटेंगी खुशियां और गुलशन में बहार होगी फिर से।
सुनसान सड़के लोगों से गुलज़ार होगी फिर से।

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11 NOV 2019 AT 17:25

अब चल पड़ी रास्ते,
मिलेगी मंजिल या कुछ और होगा अंज़ाम।
किसके साथ गुज़ारें शाम।

खाली दिल, सुनसान नगर,
फर्क नहीं जो तुम हो अगर ।
किसकी पियें, किसको पिलायें ये जाम।
किसके साथ गुज़ारें शाम।

तुम से दूर है, बेशक पी रहे है हम
मुद्दतों बाद मिली है सांसें और जी रहे है हम।
तिरगी भरे दिन हुये दूर, अब तो उजाले है शाम।

अकेला है दिल, अकेले है हम
आओ और ले जाओ, नही है कोई दाम।
नहीं पता, किसके साथ गुज़ारें शाम।

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9 NOV 2019 AT 9:50

हरा तेरा, केसरिया मेरा
जानें किस-किस ने रंग बाँट लिये।
जो पढ़ ली ज्ञान की बातें दो
हमने यहाँ धर्म बाँट लिये।।
लकीरें खींच दी सरहदों पर
और मुल्क बाँट लिये।
कल तक जो अपने थे
आज अपने को बाँट लिये।।
जाती बाँटी, समाज बाँटे और गाँव बाँट लिये
थोड़ी सरकारी रियाअत के खातिर इन्सान बाँट लिये।।
ईद का तेरा, करवाचौथ का मेरा
वाह! क्या खुब बाँट लिये।
बचपन का था जो मामा हमारा
हमने वो चाँद बाँट लिये।।
गोरी चमड़ी-काली चमड़ी, देशी बोल-विलयती बोल
जाने क्या क्या बाँट लिये।
चंद दौलत क्या पा लिया हमने
सबने अपनी हैसियत बाँट लिये।।
वो एक था, वो एक है
हमने हज़ार बाँट लिये।
मन्दिर बनाया, मस्जिद बनाया
किसी ने भगवान तो किसी ने खुदा बाँट लिये।।

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12 MAY 2019 AT 17:43

गर बस में हो ये बात मेरी,

मैं बनू तेरा राजा बेटा और हर बार बने तू माँ मेरी।

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21 OCT 2018 AT 9:45

एक और रामायण हुआ कलियुग के ज़माने में,
फ़र्क सिर्फ़ इतना है
कितने राम मरे एक रावण को जलाने में।
😢😢

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