प्रेम ने जन्म दिया विषाद को
निरंतर चलते रहने वाले विषाद को
जैसे ये मेरा स्वभाव हो
पर प्रेम तो प्रसन्नता लाता है?
शायद ये प्रेम, ईश्वर से नहीं....-
3 जनवरी 2019 से अनवरत।
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कैसे कहूंगा सोच रहा हूँ
कुछ कागज़ पर लिख लूं
या लब्ज़ों में कह दूं
अब तक तो राब्ता है
नहीं रहा तब क्या
शायद नजरों से वो समझ ले
गर परदा हुआ तब क्या
छुअन का तो माद्दा नहीं मुझमें
गर बुत बन गया तब क्या
पैगाम भेजूंगा शायद
सामना हुआ तब क्या
कैसे कहूंगा..-
She was enveloped in flowers, Looking like nature itself.
Her eyes like the shooting stars
Her hairs like waterfalls
Her curves like mountains,
Ending in a valley of grace.
What I have witnessed today
I wish to carry it to the Grave
-
आंखो में पानी, चेहरे पर मुस्कान,
अजीब सा राबता है हमारे दरमियान।
कई बार कोशिश की रूबरू होने की,
हर बार बस कदम रुक गए देख के वो मुस्कान।
आज हम सोच के निकले हैं,
आंखो में आंखे डालकर बात करेंगे उनसे,
नही देखेंगे वो मुस्कान।
ज्यादा नहीं इरादा गुफ्तगू का,
बस पूछ लेंगे उनका नाम।
लो फिर से हो गया आमना सामना,
मिल गईं नज़रें
और फिर वही मासूम मुस्कान।
थम गया सब कुछ इर्दगिर्द,
फिर आई एक मीठी आवाज़,
और मैंने सुना "रूह" है मेरा नाम।-
How does it feel like being overwhelmed
When you hug her and her smell fills your soul....-
ख़ोज रहा हूं वो पन्ना
जिसमें गुलाब दबाया था
क्या वो खुशबू अब भी होगी
या वो कागज़ अब भी भीगा होगा
क्या कुछ धुंधले अक्षर होंगे
या फिर उजला पन्ना होगा
मन कातर है मेरा भीतर,
क्या वो पन्ना अब भी होगा?-
कर्म करने से संतोष रहता है
संतोष से संताप मिटता है
संतोषी बनो, कर्म करो-