Aradhya..   (आराध्या)
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Joined 21 March 2018


Joined 21 March 2018
22 JUL 2021 AT 15:25

दर्द आँखों से उतर जाए तो दरिया लगने लगता है
पत्थर जैसा भारी दिल कुछ हलका लगने लगता है

पेश आने लगी हूँ ख़ुद से इस हद तक सख़्त दिली से मैं
आग में जलता अपना जिस्म भी ठंडा लगने लगता है

ये तो तय है इन ज़ख्मों का कोई तौर मुदावा नइ
लेकिन तेरा माथा चूमना अच्छा लगने लगता है

जब भी टाँगा है दुनिया की आँखों को दीवारों पर
अपना घर भी जैसे मुझ को पराया लगने लगता है

अपने रिश्तों ने ही बद-किरदार किया है यूँ मुझ को
आईने के चेहरे से भी डर सा लगने लगता है

जाने वाले! ऐसे अपने पाँव पटक कर नइ जाते
घर की सारी दीवारों को धक्का लगने लगता है

अब तो तेरे हिज्र में भी वो पहले जैसी बात नहीं
अब तो तेरा वस्ल भी जैसे सूना लगने लगता है

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9 JUL 2021 AT 16:51

तुम्हारी हथेली पे सर रख कर रोने में..
जितना सुकून दिल को मिलता है..
उससे ज़्यादा डर मेरी आँखों को लगता है..
कि कहीं इन से बहते खारे पानी की वज़ह से
मिट ना जाए तुम्हारी लकीरों से तुम्हारी शोहरत के लम्हें..

और छप ना जाए उस जगह पे
मेरे कमजोर लम्हों के दाग़
हमेशा हमेशा के लिए मलाल बन कर..

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8 MAR 2021 AT 11:03

कुछ औरतें सदियों से,,
निहत्था लड़ रही हैं कई जंग,
भूख के ख़िलाफ़ ..
बीमारी के ख़िलाफ़
जिस्म के ख़िलाफ़...

और कुछ औरतें जिन्होंने जिस्म के ख़िलाफ़..
तलवार उठाई थी..
अब वो भूख को अपनी ढाल बना रही हैं..

चाहे जीत हो या न हो..
मगर याद रखी जाएंगी वो,
जिन्होंने तलवार उठाई
जिन्होंने मौका मिलते ही भूख को ढाल बना ली ..
और वो औरतें जो निहत्था हैं..
उन्हें भूल जायेगा वक़्त...चाहे जीत भी जाएं....

क्यूँ कि सिपाही वो ही है
जिसके पास तलवार और ढाल हो
जो निहत्था था उसे तो कभी
किसी ने सिपाही माना ही नहीं...

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29 JAN 2021 AT 11:26

फ़ाख्ता,
वो शजर सूख गया है..
वही शजर जिसे तुम छोड़ आई थी
वो जुदाई की आग में जलकर काला हो गया..
जिस डोर से वो ख़ुद को संभाले खड़ा था
वो भी उस आग में जल कर राख़ हो गयी
अब वो पूरी तरह खोखला है...
उसके जड़ से लेकर जली हुई टहनी तक
उसकी खुद की कराहें दौड़ रही हैं....
जिस की दौड़ से आने वाली आवाज़ से
उसे ख़ुद को भी वहशत है...

वो अपनी वहशत से बचने के लिए
पास से गुजरने वाले हर मुसाफ़िर को डराता है...
कभी कोई पंछी थोड़ी सी ओट भी ले तो
उसे डरा डरा कर भगाने की कोशिश करता है..
जैसे उसे मालुम हो कि वो जल्द ही गिरने वाला है
तभी सब पर अपनी वहशत फैला रहा है
ताकि जब वो गिरे तो कोई उसके चपेट में न आये..

फ़ाख्ता, वो गिर गया तो..
उसकी बिखरी हुई लकड़ी लेने कई मुसाफ़िर आएंगे..
पंछी भी उसका एक एक तिनका उठा ले जाएंगे...
मगर उसके गिरने से पहले तुम आ जाना...
और उसकी एक सूखी टहनी ले जा कर
अपने पिंज़रे में सजा लेना
जिस से बचा रहे उसका वजूद...
और बची रहो तुम भी मलाल से...

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21 JAN 2021 AT 1:11

बिन ब्याही बेटियाँ बोझ हैं
जिन्हें हर कोई अपने सर से
जितनी जल्दी हो सके उतारना चाहता है..

ब्याही गयी बेटियाँ पराया धन
जिन्हें देख कर अफ़सोस किया जा सकता है
मगर उनसे अपनी जेब नहीं भर सकते

और भागी हुई बेटियाँ
थूका हुआ थूक
जिसे कोई दुबारा चाटना नहीं चाहता...

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21 JAN 2021 AT 0:50

जब तक कला का मतलब
दूसरों को नीचा कर के ऊपर चढ़ना
समझा जाता रहेगा..
तब तक हज़ारों लेखक आते रहेंगे
और मानवता जाती रहेगी....

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8 JAN 2021 AT 15:13

देख कर मुझे पागल इस तरह चहकता है
खिलखिलाते हैं बच्चे ज्यूँ दुकान में आ कर

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8 JAN 2021 AT 13:06

ज़ह्न पे नहीं है हक़ दिल दुखाने वालों का
निकलो मतलबी लोगो मेरे ज़ह्न से निकलो

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23 DEC 2020 AT 19:32

हम में से किसी ने कलम नहीं पकड़ी
किसी ने हल नहीं चलाया
किसी ने लकड़ी नहीं काटी..
एक बोझ है हमारे ऊपर कि
हमारे लिए किसी ने कुछ नहीं किया

कुछ करने से आसान था
किसी पर दोष लगाना।
और वो दोष हमें ही दबाए जा रहा है
ले जा रहा है हमें पतन की ओर

इसीलिए हम भाई-बहन
बिस्तर पे पड़े पड़े
बाप को गाली देते हैं
और कहते हैं
"बाप ने हमारे लिए कुछ नहीं किया"

ये दोष प्रत्यारोपण
चलता आ रहा है
परदादा से दादा तक
दादा से बाप तक
और
बाप से हम तक।।।।

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12 JUN 2019 AT 13:06





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