सागर सी गेहरी और उतना ही विशाल,
है भावनाओं का बहाव व अस्तित्व,
मेरे अंदर।
न जाने कितने बार चाहा,
कोई देखे, जाने व समझे इन्हें,
पर हुआ कभी नहीं।
शायद इसलिए के,
धरती ही धार ती है सागर को अपने सीने पर!
शायद इंतेज़ार ये हमेशा रहेगा....
ऐसी एक धारिणी हृदय का,
जो समा सके अपने अंदर,
सागर सी गेहरी और उतना ही विशाल,
भावनाओं के ये मंज़र!
-