बाहर काम कर रही हर महिला सिर्फ
अपनी स्वतंत्रता के लिए ही काम नही करती
कुछ ठंडे पड़े चूल्हों
बिलखते हुए बच्चों
छूटे हुए अपनो
टूटे हुए सपनो
गिरवी पड़े घरों
लाचार पड़े पति
को संभालने के लिए भी करतीं हैं-
♥️♥️♥️
मै किनारे सी ठहर गई उसके इंतज़ार में
वो लहरों सा आता रहा - जाता रहा-
एक शोर जो मन के अंदर है
एक शोर जो तन के बाहर है
एक गाँठ जो दिल को कसती है
एक गाँठ जो पिघल रही बाहर है
एक दर्द जो भीतर उठता है
एक दर्द जो आंसुओं मे झलकता है
एक आस जो मन में जगती है
एक आस जो रही अधूरी है
एक मोह जो बांधे है मुझको
एक मोह जो तोड़ रहा हर दम है
एक सांस जो चल रही अंदर है
एक सांस जो थम गई बाहर है
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कभी कभी बहुत नीचे जाने के बाद इंसान ऊपर तभी आता है
जब उसे ये समझ आ जाता है की नीचे सिर्फ ज़िल्लत है
और ऊपर जिंदगी-
अधिकतर एक पुरुष को उसकी पत्नी
पुरुष के यौवन और बुढ़ापे में ही अच्छी लगती है
पहले शारीरिक सुख के लिए
और बाद में
शारीरिक मजबूरियों के लिए
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धोखे तो मिलने ही है
पहले लोगों से फिर हालातों से और अंत में
खुद के शरीर से-
अगर गोरे रंग वाले इतने अच्छे लगते हैं
तो सफेद दाग वाले चेहरों से क्यों दूर भागते हो?
अगर गोरे रंग से इतना ही प्यार है
तो शादियां सफेद कपड़ों में क्यों नहीं करते ?
अगर चेहरे का रंग गोरा ही चाहिए
तो बाल सफेद क्यों नही चाहते ?
अगर सफेद रंग इतना ही शुभ है
तो सुहागनें क्यों नही पहनती ?
अगर काला रंग इतना ही अशुभ है
तो मुर्दे को सफेद कफन ही क्यों उढ़ाते हो ?
अगर सफेद रंग इतना ही सुंदर है
तो विधवा को क्यों नही भाता ?
खुली आंखों से चाहे जितनी सफेदी देख लो
बंद आंखों के पीछे सिर्फ अंधेरा ही होता है ।
ना जाने काले और गोरे में इतना क्यों भेदभाव है
जबकि सबके खून का रंग तो लाल है ।
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