कितना अपनापन महसूस होता है जब कोई
हमारे हाथों को अपने हाथों में लेकर ये पूछता है कि
"तुम ठीक हो ? "
और हम चाह कर भी झूठ नहीं बोल पाते
मानो हमारी सारी खुशी इसी में बसी हो।
मैं भी चाहता हूँ कि कोई मेरा हाल पूछे.
मेरी हँसी के पीछे की उदासियाँ
मेरी हथेलियों के तापमान से भाँप जाए.
मैं चाहता हूँ कि अब भी तुम पूछो मुझे उसी हक़ से
जिस हक़ से पहले पूछा करते थे कि
मैं तुम बिन कैसा हूँ .
क्यूंकि ये पूछने का हक़ मैंने सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हें दिया है ...
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