तुम मुझे पढ़ते रहो और मैं तुम्हें यूँही लिखती रहूँ,
बैठ कर गंगा घाट पर तुझे यूँही तकती रहूँ,
जिंदगी की भोर हो या अंधियारी रात हो,
जीती रहूँ जिंदगी हाथों में तेरा बस हाथ हो,
दूर बहते गंगा जल की कलकल आवाज़ हो,
उन आवाज़ के संग गजल तुझे मैं कहती रहूँ,
तुम मुझे पढ़ते रहो और मैं तुम्हें लिखती रहूँ।-
12 AUG 2019 AT 19:45