Ansh Babu   (अंश बाबू✍)
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Joined 9 April 2018


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Joined 9 April 2018
4 SEP 2024 AT 7:45

सज़ा-ए-इश्क़,
मुकम्मल ज़ीस्त
और ये रूह को छूना,
ये मुमकिन है
कि इसके बाद भी
ज़िंदा रहे कोई?
#AB907

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3 SEP 2024 AT 7:54

मुकम्मल माह
को देखा,
तो माज़ी याद
फिर आया,
क्या मेरा माज़ी भी
उस पार मुझको
याद करता है...
AB906

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29 AUG 2024 AT 1:17

हुक़ूक़-ए-
हयात-ए-
तमामतर
अगरचे ले
गए 'बाबू',
मुकम्मल हो के भी
यकसर
अधूरा
'अंश' रहता है...
#AB905

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20 AUG 2024 AT 1:14

तुझको उर्दू में लिख रहा हूँ,
हिन्दी में लिख दिए हैं
रिश्ते सभी मैंने...
#AB904

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7 AUG 2024 AT 7:59

मुतालबा-ए-इश्क़
कर रहा है वो,
जो शख्स ना'अहल था
कभी इश्क़ के लिए ...
AB903

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2 AUG 2024 AT 0:11

होता नहीं है दर्द,
और ना चश्म तर होते मेरे,
इक तेरे जाने से,
तन्हाई भी मेरी हो गई...
#AB902

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22 JUL 2024 AT 7:04

ना कोई गम-गुसार है,
ना अब वो एतबार है,
बिल तेरे ये ज़िंदगी भी
देखो ख़ार-ख़ार है...
#AB901

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15 JUN 2024 AT 11:53

इस दश्त-ए-सफ़र
में है, तेरे शहर का
वो मोड़,
जिस मोड़ पर
मैं खुद को
कभी छोड़
आया था...
#AB900

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3 JUN 2024 AT 0:25

वो बावफ़ा नहीं, बेवफ़ा ही सही,
मौत की देदे फिर सज़ा ही सही...
#AB899

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28 MAY 2024 AT 0:58

क़त्बे तारीख रह गई है
मेरे नाम के आगे,
कि तेरा इश्क़ पीछे छोड़ कर
तन्हा चला आया...
AB898

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