छोड दिया सब भार इस जीवन का अब तुम्हारे हाथों मे
तुम ही बिगाड़ो तुम ही बनाओ
हम तो माटी के पुतले तुम चाहो रोंदो तुम चाहो तो स्वांरो
क्या रखा मेरे हाथों में तुम ही तकदीर मेरे जीवन कि तुम चाहो तो संभालो तुम चाहो तो बिगाड़ दो
राधे-राधे-
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जज्बातों की ख़ामोशी मे
जज़्बातों को दबा गए
एक खामोश रात मे...-
है.. नारी।
फूलों सी कोमल, काँटों जैसी कठोर नारी
अपनों की खुशियों में देखे दुनिया सारी
तुम ममता की मूरत, तुम जगत की रानी
अपनों के दुख दर्द में सबसे अव्वल नारी
दुखों को दूर कर, खुशियों को समेटे नारी
तुम ही गीता, तुम ही कुरान, तुमसे ही मेरा जग महान
फिर भी दुनिया क्यों कहती तेरा अस्तित्व क्या नारी
जब छोटी-छोटी खुशियों को जीने लगती नारी
दुनिया क्यों दिखाए उसे उसकी मर्यादाएं सारी
अपने धर्म और कर्म में बंधी नारी
सपनों को करती कुर्बान, हे नारी, तुम महान
जब भी सब्र का बाँध टूटे, तुम सब पर भारी नारी
फूलों सी कोमल, काँटों सी कठोर नारी...-
क्या हू मैं क्या कहूं क्या लिखूं मैं क्या-क्या सहूं
हर कोई अपने हिसाब से समझ रहा है
क्या हूं मैं और क्या क्या बनूं मैं
मुस्किल मे हम हैं या मुश्किलों मे सारा जहां
हर रात एक सपना या सपनों मे रात
बहुत अर्सा हुआ ख़ुद से मिले हुए
मैं हू मैं या बीता हुआ कल
अगर कल था तो आज कहा आज यहाँ तो कल कहाँ..-
Jawab bhi humara hoga sawal bhi humare honge
Zikar jin batton ka hoga vo ehsaas bhi humare honge
Waqt ke therao me hum waqt nikal lenge
Tumko sunkar tumhara sath bhi denge....-
Jhut sach ki Chinta chord,
Apne alfazoon ko likhte jao,
Man me jo hai use samete jao,
Par bhar mai badalti tasveer yahaan,
Har rang ko tum yadoon me pirohte jao.-
अक्सर ताला बदलने वाले चाभी बदलना भूल जाते हैं।
जबकि घिसा ताले को नहीं चाभी को जाता है।।-
मुश्किलें मिलीं तो क्य़ा हुआ
मुश्किलों मे सारा जहां
कोई लाखों कमा के खुश नहीं
कोई हजारों मे खुश यहां
माना ये बातें है अल्फाजों कि
पर ध्यान से सोचो तो यही है जिन्दगी...-
आज मेरा वो घर जिसमें मेंने जन्म लिया,
उस घर मे आज मुझे सुलाया जा रहा था,
हर आंख नम और हर अपना मेरा,
मुझे आंसुओं मे बहाए जा रहा था,
जो न पूछते थे मुझे मेरे जीवन भर मे,
उनके दिलों मे भी मेरे लिए प्यार आ रहा था,
पता नहीं मेरे घर मे यह कैसा समां आया था,
जो जमीन पर मुझे सजाया जा रहा था,
एक तरह कफ़न सजा रहा कोई दूसरी तरफ कोई लकड़ी उठा रहा था,
चाहकर भी मे अपनी आंखें न खोल पा रहा था,
उठा कर कन्धों पर अपने मुझपर फूल बरसाया जा रहा था,
हज़ारों कि भीड़ मे भी हर कोई नज़र मुझपर टिकाए जा रहा था,
शरीर मेरा मेरी आत्मा से दूर जाया जा रहा था,
मेरे अपने जिनके लिए मे उन्की जान था,
आज उन्ही के हाथों लकड़ी पर मुझे लिटाया जा रहा था,
घी, शहद चन्दन से उबटन मुझपर लगाया जा रहा था,
चारों तरफ अग्नि को छुआया जा रहा था,
देख उस अग्नि कि लपटें हर कोई साथ छोड जाया जा रहा था,
बस साथ छोड़ जा रहा था,
निकल पड़ा मे फिर से काल चक्र के काल मे, जीवन के नए अध्याय मे.......-