यादों की कश्ती पर
जिदंगी की भागा दौरी मे
बातों के सागर मे
हर लम्हा बीतें सबका
बस उम्मीदों के साजिशों में।।।
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तेरी यादों की हल्की-सी परछाई रह गई.,
कलम थमी तो बस एक तन्हाई रह गईं।
जो लफ्ज़ कभी तुझसे मिलकर जिया करते थे,
अब उन लफ़्ज़ों में भी बस रुसवाई रह गई।।।-
हौले हौले से निकल रहीं हैं ये.
बंद मुठ्ठी से भी फिसल रहीं हैं
बिल्कुल वक्त की तरह गुजर रहीं है
ये भला कब, कहां ठहरी हैं ये.
"ज़िंदगी" अब।।।-
खामोश रहता हु मैं आजकल,
तेरे बगैर जीना मुश्किल सा लगता है आजकल
तेरे बिना सब फीका फीका सा है आजकल
बेहोशी में बीते हर लम्हा आजकल
मदहोशी से न पूछे कैसा है वो आजकल
एक तेरे जाने के ग़म से बस रोता रहता हूं आजकल
सच कहूं तो ,
मुझे बस तू चाहिए और कुछ न चाहूं मैं आजकल।।।।।-
चुप था वक़्त
मगर दिल की सदा कह रही थी,
हर मोड़ पर तन्हाई
मेरी गवाही देरही थी।
ना जुबां बोले,
ना ऑँखों से कुछ कहा जाए,
परिस्थिति गवाॉह है,
जो हर सच को दिखाए।
सच छुपाया नहीं मैंने,
बस हालात ने ढक दिया।
दिल टूटा तो आवाज़ नहीं आई,
परिस्थिति ने सब बयाँ कर दिया।।-
प्यास लगी थी गजब की. मगर पानी मे जहर था.
पीते तो मर जाते और ना पीते तो भी मर जाते.
बस यही दो मसले, जिंदगी भर ना हल हुए.!
ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए,ना तु मिला
वक्त ने कहा....
काश थोड़ा और सब्र होता.!
संब्र ने कहा.
काश थोड़ा और वक्त होता.!
"शिकायते तो बहुत है तुझसे ऐ जिन्दगी,
पर चुप डसलिये हूं कि, जो दिया तूने,
वो भी बहुतो को नसीब नहीं होता.-
हाँ अकेले चल रहा हूँ हौसला है हमसफ़र,
अब मुझे ये देखना दुनिया में कितना है ज़हर
मै तो बंजर हुई ज़मीन को फिर से हरा कर जाऊगा
बस नफ़रतों की आग में जल जाए ना तेरा शहर।।
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फिर इक नई ख़लिश की शुरूआ'त हो गई
दिल ने जो सोचा न था वही बात हो गई
क्या मेरी उन की बात हुई ये न पूछिए
अब क्या बताऊँ जो न होनी थी वहीं बात हो गई
वो गुस्से में एक नज़र मुझको देखा
फिर क्या मेरे जिंदगी वही बेहाल होगई।-