प्रिय,
तुमको सोचता हूं तो तुमको पाने की बेचैनी रहती है
और पा लूं, तो खोने से डरता हूं।
तुम्हारे पत्र का इंतेजार करते मैं थक गया था,
तो कुछ आगे की बात करता हूं।
गुस्ताखी मैने आज थोड़ी की है
माफ करना मैने आज चोरी की है,
मैं कुछ पंक्तियां चुरा लाया हूं
तुमको जो हसीं दे ऐसे शब्दावली उठा लाया हूं।
तो कहा है की
"हर चीज अपने वक्त पर अच्छी लगती है
पर तुम हो की हर वक्त अच्छी लगती हो ",
पसंद आए तो वाह करना
आगे आने वाली पंक्तियों की चाह रखना,
"अगर जान जाओ तुम तकलीफ मेरी
तो मेरे मुस्कुराने पर भी तुम्हे तरस आयेगा",
मेरी खुसी तुमने समझी होगी
इन पंक्तियों से मेरा दुख भी तुम्हे समझ आयेगा।
पिछले पत्र में भेजे सवालों का तुमने जवाब नही भेजा
क्या कोई गलती हुई मुझसे, या पसंद नही आया लहजा,
कोई गलती हुई तो माफ करना,
मैं तुमसे प्रेम करता हूं,ये याद रखना।-
*Aao kbhi Dehradun,tumhe chai pilayenge
Waadiyan ghumayenge
Dil dikhayenge
Every1 has... read more
प्रिय,
मैं तो शब्द ढूंढ रहा हूं
कभी कभी आखें मूंद रहा हूं,
क्या लिख दूं मैं इस बारी
क्या क्या बचा है रे ओ प्यारी,
चलो शुरू से शुरुवात करता हूं
वो कहानी फिर एक बार लिखता हूं,
दुई तारीख और ठंडी रात
कंप कंपाता शरीर और बुखार के हालात,
पर मन में ढांढस की एक बात थी
मैं खुश था क्योंकि तुम मेरे साथ थी,
वो हवा का झोंका अंदर आए गुर्रा रहा था
और मैं तुम्हारी बाहों मे सिमटा जा रहा था,
अब तुम्हारी सुंदरता के बारे लिखूं तो फस जाऊंगा
उन बालों के आश्रय में बस जाऊंगा,
चलो बात तुम्हारे मन की करते है
उस तारीख को हुए जतन की करते है,
क्या बताया तुमने खुदको, मुझको अपनाने को?
क्या समझाया खुदको, मुझमें मिल जाने को?
जब तुम मेरे पास थी, और रात ढल रही थी
क्या तुम्हारी भी हृदय की गति सामान्य से तेज चल रही थी?
जैसे मेरी निगाहें तुम्हारे चेहरे से नही हट रही थी
जैसे मेरी उंगलियां तुम्हारी लतों पर अटक रही थी,
क्या तुम भी ये आकर्षण महसूस कर रही थी?
कभी तुम भी तो उस रात की बात बोलो
अपने मन की बातों को मेरे सामने खोलो।
अगले पत्र में मुझे इन सवालों के जवाब भेजना,
मैं उत्सुक और उत्साहित हूं ये याद रखना,
इन बातों के साथ इन शब्दों को विराम दे रहा हूं
मेरी प्रिय,
मैं तुम्हे बहुत याद कर रहा हूं।
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सीने में बातो का पहाड़ दबाए पड़ी है
अंदर से टूट चुकी है , पर बाहर से दृढ़ खड़ी है
वो अपने दुख नही बताना चाहती
कुछ मूर्खों से अपनी हसीं नही उड़वाना चाहती
वो अपनो ही अपनो में घुट रही है
सबको तो सांभ रही पर खुद टूट रही है
कोतुहल से भरा उसका मन
ओर शांत से उसके नैन है
वो दिखती सामान्य है
पर अंदर से बैचेन है
वो कैसे कह दे कि उसके अपने, उसकी परिस्थिति, इसका कारण है
समाज में ऐसा कहना, न स्वीकार्य है, असाधारण है।-
Tu hi meri tension hai, or tu hi mera sukoon
Tu hi meri satisfaction hai or tu hi mera junoon
Tere liye hi to mene neende khoyi hai
Tere liye hi to khoyi neendo m sapne sajaye hai
Tu hai to zindagi suhani lagti hai
Tere hi aane se to mujhme badlaav aaye hai
Baate ye jhooti lge ,ya lage sach
Tu maan ya na maan
I just know "I Love you Jaan"-
Hum sab shaadi enjoy karte hai
Jhumte hai naachte hai gaate hai
Ladte hai chidte hai,sunte hai sunaate hai
Aashirwad dete hai, aashirwad lete hai
Pr kuch dayre aise jha dhyan dekr b najarandaj krna hota hai
Ladke ladki ka byaah h bhyi, roz roz thodi hota hai
Ek baap apni beti or jaydaad dono gawa rha hai
Ek bhai apne PF ka pesa tak nikaal apne bhai ka tent lgwa rha hai
Ek maa apne gehno ki anghooti bna beti ko deti h
Ladke ke baap k saamne premature FD todne ki chunoti hai
Confusion yun bhi chal rhi hai ki behen ko lehenga dilau
Ya dosto ke liye RS ki peti lau
Dosto ko alag se party bhi to kraani hai
Pr behen ki dress bhi konsa roz roz aani hai
Sab rishtedaron ki khwahish, parivaar ki jeb dhili kr rhi hai
Or agar kuch kam krne ki soche to -
"Doosro ka b to khaya hai " ye pankti darr bhar rhi hai
Ajeeb vidambana hai, fate kurte me raja waali shaan dikhani pad rhi hai-
तू न समझेगी,
मोहब्बत को किसी के साथ देख क्या कलह मचती है,
जलन की आग रक्त को फूंक कर रख देती है
दिल सिकुड़ने को उतारू हो जाता है
सांसों का शरीर में बहाव प्रतिरोधक होने लगता है
एक चींख बस कतरे कतरे में गूंजती हैं
की क्यों?
मेरे ही सामने क्यों?
तुझे किसी बाहों में देखना साधारण होता
तो मोहब्बत नही सौदेबाज़ी कह देता अपनी कहानी को।-
बहस , खफा, शिकायत तुझसे क्या करें
हर बार तो हारना पड़ता है तूझसे मोहब्बत बचाने को।-
कुछ दशकों की बात है
ना मैं रहूंगा ना तुम
रह जायेंगी तो बस कुछ कविताएं
कुछ नज्में
जिनमे जिक्र तुम्हारा है,
जो सिर्फ तुमको बयान करेंगी।-
तो एक शायरी कुछ यूं बितक कर बोली
की उतार दे मुझे कलम की नोक से किसी पन्ने पर
तेरे दिमाग में पड़े पड़े रोजाना कितने चेहरे बदलती हूं।-