पल भर में कई जिंदगियां रौंद देते हो,
बेटा हो के माँ की अस्मत लूट लेटे हो,
तुम्हें नौ माह सींचा गर्भनाल में जिसने,
उसे जड़ से उखाड़ कर ही फेंक देते हो,
मर जाता है उस रोज़ तेरी आँख का पानी,
दानव बन के अतड़ियाँ तक नोच लेते हो,
दूधमुंही बच्ची के भी मासूम शरीर में,
अपनी मर्दानगी का खंजर रोप देते हो,
क्या विक्षिप्त,क्या बूढ़ा किसी को ना छोड़ा,
हैवानियत का ज़हर फिज़ा में घोल देते हो,
जब भी मैं देखूँ पलट के अख़बार में खबर कोई,
फिर अपनी वहशीयत का नंगा नाच पेश करते हो,
बहुत रह चुकी खामोश गर्जेगी आज की नारी,
रे नापित रुक के हर कुकर्म का हिसाब देते हो|
- ©अंजुमन