हर शाम हम टकाराते है....इन ज़ख्मो के साथ मेहखाने मे..... कौन केहता है तुम्हारा मेरा रिश्ता नही है..... जाम मे बर्फ़ कि तरह पिघल रही हो तूम... कौन केहता है इस नशे मे तुम्हारा हिस्सा नही है.....
इतना आसान होता तो कब से बदल देता... जो चिज़ खराब हुइ है.... वो आइने मे दिखती कहा है.. लफ़्ज़ खराब होते मेरे, तो भाषा बदल देता.... जिसका ज़ेहन खराब हो... उसको ये बारिकी दिखती कहा है.....