किसी लम्हें हमे वो याद रखता था
सभी को वो हमारे बाद रखता था
जिसे नफ़रत हुई है अब कभी तो वो
हमें मिलने की भी फ़रियाद रखता था
ये जिससे अब लगा है ज़ख़्म बातों का
वो बातों से हमें आज़ाद रखता था
उसी ने जंग में भेजा सामने सबके
बड़े जो प्यार से औलाद रखता था
हँसी आई ये सुन मुझको के मैं उनको
ये कहते मैं उन्हें नाशाद रखता था
मुझे जैसे रखा है तुमने यूँ इससे तो
किसी कैदी को तब शहज़ाद रखता था
मेरे तो बाद कोई भी नहीं रख पाया
मैं ही था फूल जो आबाद रखता था
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