जीवन पथ जटिल है ये, कालचक्र कठिन है ये,
पग पग पे भेद -भाव है, रक्त-रंजित पाँव है,
जन्म से किसी के सर वंश की छाँव है,
झूट के रथ पे सवार डाकुओं का गाँव है,
किसी के पास है छलकपट,किसी को रूप का वरदान है
ये सोच के मत बैठ जा कि ये विधि का विधान है.
बज रहा मृदंग है, ये कहता अंग-अंग है,
की प्राण अभी शेष है, मान अभी शेष है,
उठा ले ज्ञान का धनुष, एक कण भी और कुछ मांग मत भगवान से
ज्ञान की कमान पे लगा दे तू विजय तिलक,
काल के कपाल पे लिख दे तू ये गुलाल से,
'की रोक सकता कोई तो रोक के दिखा मुझे,
हक़ छीनता आया है जो अब छीन के बता मुझे.'
ज्ञान के मंच पर सब एक सामान हैं,
विधि का विधान पलट दे, तो ब्रह्मास्त्र ज्ञान है
तो आज से ये ठान ले, ये बात गांठ बाँध ले,
की कर्म के कुरुक्षेत्र में,
ना रूप काम आता है, ना झूठ काम आता है,
ना जाती काम आती है, ना बाप का नाम काम आता है,
सिर्फ ज्ञान ही आपको आपका हक़ दिलाता है ।
- अमन ✨
28 JUL 2018 AT 12:35