aman akash   (Aman Akash)
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28 OCT 2023 AT 11:38

"Intelligence beyond Conclusions"

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28 JAN 2023 AT 13:50

कभी सोचा न था
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कभी सोचा न था यूं एक दिन तुम्हारी कमी खलेगी
इतने सालों बाद भी मन के दर्पण पे तुम्हारी झलक दिखेगी
और कमी खलेगी इस कदर की भीड़ में तन्हा हो जाऊं
हसूं ऊपर से, मन ही मन रुसवा हो जाऊं
और पड़ जाऊं अकेला, मित्रों के बीच, हृदय में रिक्त स्थान लिए
कभी सोचा न था, फिर मिलूंगा तुमसे ख्वाबों में तेरा नाम लिए।

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24 AUG 2022 AT 21:44

वर्षा, तुम आई तो हो।

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19 MAY 2022 AT 1:44

चलो कुछ वक्त मोहब्बत के नाम हम फिर बिता लेते हैं
चंद लम्हे ही सही, मुस्कुरा लेते हैं
और भागम भाग जिंदगी की तो है और रहेगी
दो पल ही सही, जरा दिल लगा लेते हैं

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9 APR 2022 AT 19:34

खुद को यूं तुम बोझ बनाए बैठे हो
कितना खुद को तुम सताए बैठे हो !
बाहर के हमलों से तो लड़ लेगा तन मन तुम्हारा,
खुद के प्रहारों का कभी उपाय सोचे हो !

क्या हुआ जो समय नहीं है तुम्हारे अनुकूल
क्या हुआ जो परिस्थितियां दिखती सारी प्रतिकूल
जब तक जीवित हो, खुद "जीवन" हो तुम
है क्या असाध्य, जब है तुममें सृष्टि का मूल

तो पहचानो खुद को और अपनी क्षमताओं को
सशक्त बनो और पार करो अपनी सीमाओं को
जब तक सांसे चल रही, तुम बोझ नहीं चालक हो जीवन के
विवेकशील बन सुलझा दो, जीवन की सब समस्यों को

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7 APR 2022 AT 22:07

"ईर्ष्या"
(-अमन आकाश)
हो भाव क्या अदभुत तुम ईर्ष्या, मानव मन वश में करती हो
बुद्धि विवेक जन का हर के, विष बीज द्वेष के बोती हो
क्षण भर में बंधु अप्रिय, परिजन दुर्जन बन जाते हैं
सत्काम परम पावन में भी षडयंत्र भयंकर दिख जाते हैं

क्या चलता मन में लोगों के, तेरे आ जाने के बाद ?
हूं मैं सही, सब गलत हैं जी, पर नही मानता कोई मेरी बात!
अरे मैं हूं काबिल, वो नही जिसको यश आज मिला है जी!
हकदार मैं हूं, सम्मान तो उसको किस्मत से मिला है जी!
अरे नेक काम क्या करता वो, धोखेबाज है, दिखता नहीं!
धन संपत्ति अर्जित की उसने ? मेहनत, नहीं चोरी है जी!
क्या देखा मैंने चोरी करते ? अरे ये तो सब जानते हैं जी।
मैं काबिल तो कुछ किया क्यों नहीं ? अरे छोरो क्या बकते हो जी!

तुम अदभुत हो ईर्ष्या क्योंकि गुण विशेष तुममें कुछ हैं
क्रोध भी तुम पोषित करती, नफरत भी तुममें लय है
लोभ, मद, जिज्ञासा भी है और ध्वंस तुममें लय है
ऊपर से हैं मीठे बोल, और झूठी मुस्कान तुममें लय है
तुम्हे देखना कठिन बड़ा, पिंड छुड़ाना विषमकर है
पर नागिन हो तुम, न छूटा पिंड तो नाश मनुष्य का तय है

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22 JAN 2022 AT 18:29

Observation 2
Observing the conscious mind

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21 OCT 2021 AT 17:57

Even the raging fire ball,
"Sun'', as we call
Turns sweet and blushes itself to orange-red
When every twilight,
it sees the very embodiment of ethereal beauty
And it's rays get the chance to kiss her...

Making you glow even more
And your charm enrich and enlighten every onlooker

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19 SEP 2021 AT 10:26


तू मधुघट है, मैं छोटा सा प्याला
मैं राही, तू मधुशाला

सुध में रहूं तो चोरी चोरी तेरे पास भटकता हूं
बेसुध रहूं जो मैं, झट से तेरी गोदी में आ गिरता हूं
सुख में रहूं तो जश्न मनाने तेरे दर पे आता हूं
दुख में रहूं तो गम मिटाने तुझको गले लगाता हूं
जिसे पीकर हो तृप्त मनुज, तू उस मधु का भंडारा
तू मधुघट है, मैं छोटा सा प्याला
मैं राही, तू मधुशाला

पीना शुरू किया कब कैसे याद नहीं मुझको है अब
मैं तो जानूं प्याला और प्याले में है आनंद गजब
दुनिया वाले जाने दुनिया, मेरी दुनिया तू है अब
मदहोश हूं क्या मैं ? चहुओर, दिखे मुझको तू ही अब
लोग कहें नशा जिसको, प्रेम कहे पीनेवाला
तू मधुघट है, मैं छोटा सा प्याला
मैं राही, तू मधुशाला

धीरे धीरे पड़ रही लत, स्वप्न है आदी हो जाऊं
डूबूं जाम में इतना मैं, पड़े पड़े छलक जाऊं
भक्ति, प्रेम, सुख, शांति, जीवन, सब कुछ मैं तुमसे पाऊं
भटकूं मैं कितना भी, वापस तेरे पास ही मैं आऊं
मंदिर, मस्जिद, गिरिजा तू ही, तू ही मेरा गुरुद्वारा
तू मधुघट है, मैं छोटा सा प्याला
मैं राही, तू मधुशाला

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18 SEP 2021 AT 14:29

जिंदगी धरा सी पड़ी हुई
जिम्मेदारी की धूप से सिंकती
थोड़ा धिपती, थोड़ा सहती
दिनों दिन क्षमता में बढ़ती
पर एक दिन ऐसा भी आता है
प्रभाकर आग बरसाता है
धिपति नही, तब जलती है धरती,
किसी तरह सहती है धरती
जिम्मेदारी इतनी बढ़ जाती है
जिंदगी तकलीफ बन जाती है
किरणें शोले बन जाती है जब,
धरती तड़प कर रह जाती है तब
तड़पती है पर क्या करे !
कौन रूदन को शांत करे?
है कौन मसीहा इस जग में
जलते सूरज को जो ढक दे
जब दुख बहुत बढ़ जाता है,
एक चमत्कार हो जाता है
बदलियां बढ़ी चली आती हैं
ठंडी हवाएं संग ले आती हैं
गरजती हैं, बरसती हैं जब,
मस्ती धरा पे छाती है
जलता है सूरज जलने दो
जलते सूरज को ढक कर ये
धरती शीतल कर जाती हैं
है श्रोत जीवन का सूरज, पर बिन बादल जीवन है क्या ?
है आवश्यक संघर्ष, दायित्व भी, पर बिन मस्ती जीवन है क्या ?

-Aman Akash

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