Qasid   (क़ासिद)
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Email : agarwalalok125@gmail.com
Insta : alok._agarwal
An Aerophile 🛬🛫✈️🛩️
Joined 23 May 2017


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14 FEB AT 20:51

ये जो बसती है तहज़ीब ज़हन में
एक लड़की की जागीर समझ लो

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15 OCT 2023 AT 11:39

तुम्हारे बाद मेरा हमदर्द ये मौसम है
मेरी आंखों का रंग फूलों में उतर आया है

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18 MAR 2023 AT 23:26

तुम आना कि जैसे
उछलती-कूदती हुई समुद्र की लहरें
आती हैं तट की ओर
और उड़ती-बिलखती हुई रेत को
एकाएक कर देती है शांत

तुम आना कि जैसे
डाली पर किसी सवेरे
स्वत: दिख आती है एक हरी पत्ती

तुम आना कि जैसे
रात की आग़ोश में
सिमट जाती है सांझ

या फिर आना
कि जैसे अग्नि के समक्ष
धीमे-धीमे
सात वचनों के बीच
पुरूष के वामांग में
समा जाती है स्त्री !

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29 OCT 2022 AT 21:04

बच्चों की लड़ाई में
दांव पर लगती है मिठाईयाॅं
जब चारागर हो जाए असहाय
तो माॅं दांव पर लगा देती है भक्ती
जो आए सवाल व्यापार का
तो पैसों के दम पर निभ जाता है
पर प्रेम?
जब बात प्रेम की हो तब
स्वयं ईश्वर पर लग जाता है प्रश्न‌ चिन्ह!
और उस प्रश्न चिन्ह को मिटाने के लिए
प्रेमी के अश्रु के सिवा दुनिया में कुछ भी नहीं

ईश्वर करे हर प्रेमी के पलकन पर आए
हर अश्रु का बूंद
प्रेम को बचाते हुए
ईश्वर के अस्तित्व को सिद्ध कर सके !

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11 JUL 2022 AT 22:04

किसी साधु के कमंडल का जल
या दो अंजुरी के बीच बंधे हुए
अक्षत के कुछ दाने
किसी द्वार पर चावल से भरे लोटे को
तुम्हारे पैरों का स्पर्श
या कि दुपट्टे की कोर से बांधा गया
जीवन का डोर
इन सब चीज़ों से कहीं ज़्यादा पवित्र था
तुम्हारी मांग पर मेरा एक ईश्वरीय चुंबन !

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19 APR 2022 AT 19:26

तुम्हें मुझे छोड़ना चाहिए था
जैसे एक तारा छोड़ता है
आकाश को
पर तुमने ऐसे छोड़ा
जैसे दिसंबर के महीने में
सूरज छोड़ता है धरती को
धीमे-धीमे
सिहरन की गोद में

एक बार छोड़ने में तुमने
मुझे कई बार छोड़ा है!— % &

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15 APR 2022 AT 8:09

राधे - मेरे हर सवाल का तुम्हारे पास यही जवाब है, अगले जनम में!
मैं - हाॅं
राधे - फिर हम इस जनम में क्यूॅं मिले ?
मैं - वक़्त से बलवान कोई नहीं राधे, वक़्त से दो-दो हाथ नहीं करते
राधे - ये वक़्त हमारा नहीं ?
मैं - वक़्त हमारा ही है, हमारे परीक्षण का है
राधे - क्या होगा इस परीक्षण से ?
मैं - परीक्षण के बाद वक़्त को हमें मिलाना होगा बिना किसी रुकावट के
राधे - आख़िर कब ?
मैं - अगले जनम में!— % &

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2 FEB 2022 AT 9:22

वो सुंदर, और सुंदर होती जा रही है
हद्द-ए-बीनाई में इज़ाफ़ा कर दे मौला— % &

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22 JAN 2021 AT 8:39

बीता हुआ मौसम
या फिर पत्तों पर ओस की बूंदें
पहाड़ों से टकराकर आवाज़
सूखी टहनियों पर हरी पत्तियाॅं
या फिर काम के सिलसिले में
शहर को गया लड़का

उचित समय आने पर
सब लौट आते हैं

फिर ऐसा क्या है जो कभी लौट नहीं पाता?
प्रेम में एक दफ़ा टूटा हुआ विश्वास!

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3 OCT 2020 AT 16:40

ये ग़म मेरा एक अजीब सफ़र में है
ये आँसू मेरे होंठों से हो कर गुज़रेगा

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