देखा है मैंने गुम होकर..
अपनी पूरी पहचान खोकर..
खुद को ढाला, खुद को बदला,
अपनी पूरी हस्ती को धोकर..
ना किसी ने खोजा,
ना किसी ने ढूंढा..
जिसके लिए हुई गुमनाम,
उसने और भीतर तक तोड़ा,
मरोड़ा, हिलाया, डुलाया
और फिर मुझे खूब घुमाया..
फिर दूसरा सांचा बनाया..
उसमें भी मैंने खुद को ढाला.
कहीं पैर ना जमे, कहीं हाथ ना आया,
फिर भी तोड़-मरोड़ खुद को अंदर समाया..
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