रघुकुल रीत सदा चली आयी...
मैंने तो केवल मर्यादा निभाई
आंशू लेके नयन,हृदय मे...
पीड़ा सह, राजधर्म सिखाई
जानकी मेरी प्रिय अभागी..
है राम तेरा श्राप का भोगी
आज मेरे राजकुंवर कुटिया मे
मै राजभवन का अनुनायी
देख क्रोधित नन्ही आंखे
मेरे मन मे भय है समाई..
कहती मुझसे पावोगे राजा
जननी कि पीड़ा का फल
मै बन गया हृदय का रोगी
जानकी मेरी प्रिय अभागी...
है राम तेरा श्राप का भोगी...
- Ajay panse...
8 DEC 2018 AT 8:57