तुम्हारी कब्र पर मैं फातिहा पढ़ने नहीं आया
मुझे मालूम था
तुम मर नहीं सकते,
तुम्हारी मौत की सच्ची ख़बर जिसने उड़ाई थी वो झूठा था
वो तुम कब थे,
कोई सूखा हुआ पत्ता हवा से हिल के टूटा था, मेरी आँखें
तुम्हारे मंजरों में कैद हैं अब तक.
तुम्हारे हाथ, मेरी उँगलियों में साँस लेते हैं,
मैं लिखने के लिए
जब भी कलम काग़ज़ उठाता हूँ
तुम्हें बैठा हुआ अपनी ही कुर्सी में पाता हूँ.
तुम्हारी कब्र में मैं दफ्न हूँ,
तुम मुझ में ज़िन्दा हो
कभी फ़ुर्सत मिले तो फातिहा पढ़ने चले आना -
निदा फाजली...-
19 OCT 2018 AT 19:26