---:: मिल जाएगी कोई तुम्हारी तरह ::---
हां मिल जाएगी कोई तुम्हारी तरह।
हां माना के उससे मुलाक़ात दर, वो हवा के झरोखे नहीं होंगे।
साथ निवाले तोड़ने में वह भूख नहीं होगी।
वो बिना अल्फाज की बातें नहीं होंगी।
पर हां, मिल जाएगी कोई तुम्हारी तरह।
थक-हार कर उसे ही पुकारा करूंगा,
उसकी जुल्फों से भी खेला करूंगा।
हां माना के वो तुमारी तरह मेरी बेज्जती ना किया करेगी,
मेरी बातों पे ज़्यादा हंसेगी नहीं।
वो चांद तो होगा पर वो चांदनी रात नहीं।
कोई बात नहीं, मिल जाएगी कोई तुम्हारी तरह।
जज्बात बायां करूंगा उसे भी,
वो उन्हें एहसास भी किया करेगी।
हां माना वो तुम्हारी तरह समझा ना पाएगी,
मना नहीं पाएगी, मेरे कहने पर मुझे ,
अकेला भी छोड़ दिया करेगी,
तो क्या हुआ, मिल जाएगी कोई तुम्हारी तरह।
इश्क़ होगा उससे भी, सरी दुनिया भी उसी से होगी।
पर वो चाह नहीं होगी, वो दिल का धड़कना नहीं होगा,
मैं मैं नहीं रहूंगा और वो तुम नहीं होगी।
पर कोई बात नहीं, मिल जाएगी कोई तुम्हारी तरह।
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