जैसे डोर के बिना पतंग का कोई वजूद नहीं, स्वर के बिना गायक खा कोई वजूद नहीं, जैसे स्यास्याही के बिना कलम का कोई अस्तित्व नहीं, उसी तरह मेरी रूह का तेरे इश्क के बिना कोई वजूद नहीं, तेरे इश्क के बिना मेरी कविताओं में जान नहीं, और तेरे बिना मेरा कोई अस्तित्व नहीं।
वो हंसते हंसते कुर्बाना हों जाते, हम मोमबत्तीया ही जलाते रह जाते, पूरी रात जागकर वे देश के आशिक कहलाते हैं देश से इश्क कर, अपने बच्चों से अगले जन्म मोहब्बत देने का वादा कर जाते हैं।
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