Achyutam Yadav   (Achyutam)
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▫️I'm 20
▫️From Jaunpur, Uttar Pradesh
▫️A ghazal lover
Joined 17 December 2019


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Joined 17 December 2019
8 FEB AT 22:21

रौशन हो के लौट आया है
उस पे बुज़ुर्गों का साया है

दहशत में जीने वालों को
जीने का फ़न कब आया है

ख़स्ता-हाली में भी दियों ने
तारीकी को धमकाया है

धूल में खेले आईने को
आब-ए-चश्म से चमकाया है

रब ने हमारे दिल को आख़िर
जिस्म में ही क्यों दफ़नाया है

देख के क़ुदरत में तारीकी
एक सितारा घबराया है

दिल एक ऐसा बाग़ है जिसको
रंज-ओ-ग़म ने महकाया है

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5 FEB AT 12:19

हुआ हर एक से झगड़ा हमारा 
फ़क़त तुमसे ही है रिश्ता हमारा

ठिकाने लग गयी है अक़्ल अपनी
हमीं को खा गया पैसा हमारा

अब आने लग गए तोहफ़े हमें भी
न जाने उतरा कब क़र्ज़ा हमारा 

फ़लक़ छूने की ख़्वाहिश ही नहीं है
भले ही टूटा हो पिंजरा हमारा

बड़ा मुश्किल है वस्ल-ए-यार अब तो
ग़लत-फ़हमी में है लड़का हमारा

डरे लश्कर को हिम्मत दे रहा है
अभी तक ज़िंदा है राजा हमारा

ज़मीं का सौदा करने वालो देखो
क़मर पे रक्खा है नक़्शा हमारा

सुनहरी शाम गेसू खोले आई
सहर से था यही दावा हमारा

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1 FEB AT 11:15

बे-नफ़स और बे-सदा चेहरा 
ऐसा ही लगता है मिरा चेहरा

मेरा इक चेहरा देखा है तुमने 
पर नहीं देखा दूसरा चेहरा

उसकी पेशानी पे लिखी थी भूक
माँ ने बेटे का जब पढ़ा चेहरा 

ऐसा चेहरा तो मुझपे जचता है
क्यों है बे-कैफ़ आपका चेहरा

इक दरख़्शाँ अलम दिखा सबको
दिल का होता है आइना चेहरा

इक दिया ले के आया पलकों पर
ख़ाक सा वो बुझा-बुझा चेहरा

फ़ासला इतना है कि मत पूछो
धूप है ख़ुशियाँ तो गुफ़ा चेहरा 

इन ग़मों ने तो फेंका था तेज़ाब
ग़ज़लों ने दे दिया नया चेहरा 

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25 JAN AT 12:35

कभी मैं चलूँ कभी तू चले कभी बे-मज़ा ये सफ़र न हो
किसे मंज़िलों की तलाश है, हमें चलते रहने का डर न हो 

कहाँ शब है और कहाँ सहर, कहाँ धूप और कहाँ चाँदनी
मैं तिरे गुमान में ही रहूँ मुझे इन सभी की ख़बर न हो

गिला मुझसे हो उसे या-ख़ुदा हाँ मगर फ़िराक न हो कभी
कि फ़िराक-ए-यार अगर हुआ, तो ये दास्तान अमर न हो

ये जो आँसुओं का लिफ़ाफ़ा है कई दर्द इस में पले-बढ़े  
कभी झाँक ले मिरी आँख में तुझे एतिबार अगर न हो 

न अयाँ हुईं मिरी ख़ामियाँ न अयाँ हुईं तिरी ख़ामियाँ
कोई करना चाहे भी गर अयाँ तो सदा में उसकी असर न हो 

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19 JAN AT 12:36

बह गया उसका भी लहू शायद
थक गया है मिरा अदू शायद 

रूठ कर आज अपने दिलबर से
लौट आया वो अपने कू शायद 

चाहता था तुझे तबाह करूँ
हो गया दिल-पज़ीर तू शायद

रब ने शब में फ़लक के कपड़ों पर
तारों से कर दिया रफ़ू शायद 

मेरे दिल को मेरी ज़िहानत से
करनी है कोई आरज़ू शायद

मुझको ग़मगीन करती जा रही है
आज ख़ल्वत की जुस्तुजू शायद

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15 JAN AT 0:33

अब क्योंकि तू मुझसे जुदा होता नहीं
दिल मे ग़मों का दाख़िला होता नहीं

आँखों से तेरे अब नशा होता नहीं
पर बोलने का हौसला होता नहीं

तन्हा सितारे टूट कर गिरते रहे
पर इनका कोई क़ाफ़िला होता नहीं

तू ने ये क्या जादू किया है उसपे यार
वो शख़्स तेरा है मिरा होता नहीं

मेरे तख़य्युल में कभी आओ न तुम
ऐसा तो कोई हादसा होता नहीं

दिल को तसल्ली कैसे दें तू ही बता
अब ज़र्द पत्ता तो हरा होता नहीं

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29 NOV 2023 AT 19:58

ख़ुशियों से एक-दम जुदा रही है
ज़िन्दगी मेरी बे-मज़ा रही है

माजरा क्या है जो मिरी तक़दीर
बे-मुरव्वत ही रास आ रही है 

आशिक़ी ने रुलाया है यारो
बेवफ़ाई बहुत हँसा रही है

हर तरफ़ मुज़्महिल बशर ही दिखे
ना-मुरादी बहुत सता रही है

वो मिरा चैन छीनने वाली
मुझसे हमदर्दी क्यों जता रही है

फिर से बनके अरूस वो बेवा 
अश्कों से आइना सजा रही है

आरज़ू है कि ख़ुल्द तक जाऊँ
ख़ुदकुशी रास्ता दिखा रही है

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13 OCT 2023 AT 18:26

हो गया मुझसे इतना ख़फ़ा रास्ता
ढूँढना ही पड़ेगा नया रास्ता

आई नज़दीक जब मेरी मंज़िल तो फिर
रास्ते से मिरे हट गया रास्ता

ले गया दूर कितना मुझे तुम से ये
मैंने शायद ग़लत ही चुना रास्ता

जब गुलाबों की ख़ुशबू सफ़र में चली
काँटों के बीच से भी बना रास्ता

जब खुली आँखों से देख पाए नहीं
आँखों को बंद करके दिखा रास्ता

वैसे तो उसकी मंज़िल थी नाराज़, फिर
तैश-ए-मंज़िल से कैसे बचा रास्ता

'अच्युतम' सबका था रास्ता दाव पर
जाने किसने ख़रीदा तिरा रास्ता

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7 AUG 2023 AT 20:46

ज़िन्दगी ने मेरे साथ क्या क्या किया
खोल दीं मेरी आँखें ये अच्छा किया

अपनी मंज़िल पे आ ही न पाते कभी
हमने ही रस्तों के साथ धोका किया

देखकर इस ग़रीबी का आलम ही तो
धूप ने देर तक मुझपे साया किया

एक एहसान से कम नहीं है ये भी
मौत ने ज़ीस्त का क़र्ज़ हल्का किया

चाँदनी मेरे हिस्से में आई नहीं
मैंने महताब का ख़ूब पीछा किया

'अच्युतम' था शहंशाह मैं भी कभी
वक़्त ने ताज को मेरे कासा किया

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3 AUG 2023 AT 17:08

इल्ज़ाम ही इल्ज़ाम कमाती है सियासत
दोज़ख़ में ग़रीबों को ले जाती है सियासत

बातें तो बहुत की गईं मंशूर में लेकिन
बारान इन आँखों में ले आती है सियासत

ज़हरीली हवा बनके, इसी मुल्क में रहके
लहराते तिरंगे को सताती है सियासत

सोना बना दे हाथ लगा दे जिसे , फिर भी
अफ़साने ग़रीबों के छुपाती है सियासत

जो है ही नहीं आदमी को दिखता है वो भी
देखो तो ये जादू भी दिखाती है सियासत

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