कविता : - "वह मेरी नियति थी"
कई बार मैंने निश्चय किया
जो होगा सो होगा
रह लूँगा
और इस ख़याल पर
मुग्ध होता हुआ
कि मैं एक पहाड़ हूँ
समूचे आकाश को
अकेला सह लूँगा।
- श्रीकांत वर्मा-
स्मृतियाँ धुँधली होती जा रही है,
जिन्हें बहुत ज़रूरी था संभाल कर रखना ।
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Living, observing and understanding these are the three stages of life unfortunately most of us stuck between observing and living while the aim is understating the life and that gives you the real meaning of life and here the thing comes which is balance that takes you towards the meaning of existence.
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मुझे कोई मुझसा रहगुज़र नही मिलता,
दिल मिल जाए तो दर नही मिलता,
कोई मुझसे और मैं किसी से उम्मीद भी रक्खूँ तो क्या,
मंज़िल तो मिल गयी है मग़र
कारवाँ-ए-सफ़र नही मिलता ।-
आँखे खोल लेता हूँ अब मैं, जब कोई ख़्वाब आने लगते है,
इस तरह से अब हम ख़ुद को समझाने लगते है ।
कई ग़म है अपने, कई ख्वाहिशें ,
जाने फ़िर क्यों ज़माने के ग़मों में सिर खपाने लगते हैं ।
वो मुझसे मदद लेकर भूल जाते हैं हर दफ़ा,
हम मदद के आदी हो चुके और आदत छूटने में ज़माने लगते हैं ।
हम रात के तस्सवुर में सितारों के साथ चलते हैं,
अँधेरे हमसे अब नज़रें चुराने लगे हैं ।
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