10 JUL 2017 AT 20:06

रोज़ जलती है, रोज़ मरती है
तवायफ़ जो ठहरी
कोठे की चारदीवारी में
चंद पैसों की ख़ातिर, वो रोज़ बिकती है

- Abhishek Kamboj