रोज़ जलती है, रोज़ मरती हैतवायफ़ जो ठहरीकोठे की चारदीवारी में चंद पैसों की ख़ातिर, वो रोज़ बिकती है - Abhishek Kamboj
रोज़ जलती है, रोज़ मरती हैतवायफ़ जो ठहरीकोठे की चारदीवारी में चंद पैसों की ख़ातिर, वो रोज़ बिकती है
- Abhishek Kamboj