भीड़ और भेड़ ही हाँके जाते हैं
साथ चलने वाले
आपके साथ दूर तक जाते हैं
ग्रहण करने की नीयत हो तो
ज्ञानी जुड़ते चले जाते हैं
मंशा हो दूसरे को गिराने की
तो अपने लिए ही कब्र बना जाते हैं
ना पथप्रदर्शक बनने की चाह हो
ना अन्धभक्ति की राह हो
केवल हो विलीन जो स्वयं में
उसको किसी का डर कहाँ
जो अपनी चेतना से आगाह हो
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ज़िद नहीं किसी से होड़ की
तलाश नहीं किसी भी मोड़ की
मुसाफ़िर हूँ मैं अपने सफ़र की
सफ़र ना देखूँ मैं किसी और की
पथिक हैं सब अपनी डगर के
हासिलकर्ता हैं अपनी रहगुज़र के
फिर प्रतिस्पर्धा है बचकाना
किसको किसके आगे है निकल जाना
जो राह पे अपनी डाले हो नज़र
तो फिर क्यूँ लगता है किसी और का डर
अपने कदमों को नापो तुम
अपने ज़मीर में झांको तुम
यह जीवन है कोई दौड़ नहीं
क्या ख़ुद पे तुम्हारा ज़ोर नहीं
तुम संग जो दौड़ रहा हर पल
तुम ख़ुद ही हो कोई और नहीं
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*COMMUNICATION PARALYSIS*
Two people in a relationship are never wrong when heard separately from their perspectives, but everything goes wrong between them when in order to make the other listen to their thoughts, they actually miss out on listening to themselves. When both of them operate from the need to be heard, they become deaf to their own egos and to each other.-
When you are not in the race
When you love your space
When you are ready to face
When no sham affects your grace
When you stop the chase
It’s then you embrace
The life you are
The love you are
The happiness you are
The peace you are
It’s then
You walk in beauty
of your own sort
The beauty of who you are
The beauty of being a star
Of your own firmament
And reigning your own sky
Under your own arrangement
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“चलो चलें” से “असल में चलने“
के बीच का सफ़र है ज़िंदगी
जिनमें जिया करते है चलने की तैयारी,
पीछे छूटते हुए पल का डर,
आने वाले पल की अनिश्चितता ,
स्वयं पर विश्वास का अविश्वास,
एक कदम आगे और
चार कदम पीछे जाने की गतिहीनता
और इन सब निराशाओं में बसी हुई
अनोखी -सी आशा
कि इस छोर से उस छोर का
नज़ारा कुछ और ही होगा
मंज़िल मिले ना मिले
मंज़िल का इशारा कुछ और ही होगा
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कुछ अलविदा इस क़दर भी हुआ करते हैं
कहने-सुनने की गुंजाइश जहाँ होती नहीं
बस चुपके से निकल लिया करते हैं …
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You're not meant to manage others' expectations of you, but you are meant to manage your own expectations of others not having expectations of you.
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The only purpose of life you've come to realize is to unlearn what you've learned about yourself and others. No knowledge is permanent, and no destination is final.-
क्योंकि हम अच्छे हैं और हमें हमारी अच्छाई के लिए जाना जाता है, ज़रूरी नहीं कि हम अपने भीतर आये किसी नफ़रत को दबाते रहें। नफ़रत भी प्रेम की ओर ले जाने का मार्ग है ! बस अपने पनपते हुए नफ़रत का अवलोकन करना है और मानना है कि बुरे विचारों का आना भी सामान्य है। उसकी अवहेलना करना या फिर उसे असामान्य मानना हमें अच्छाई की ओर नहीं उसके दवाब में रखता है ।
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