आरती हो गई, मगर अज़ान अभी बाकी है! बंट गया प्रसाद, मगर इनायत अभी बाकी है! मोल ली दुश्मनी, मगर रफ़ीक बनना अभी बाकी है! क्या इंसानों के, अंदर का इंसान अभी बाकी है..?
प्रेम पारस है जिसे छू ले, उसे कुंदन कर दे ; प्रेम इबादत है... जिसे हो जाएँ, उसे खुदा कर दे ; प्रेम की कोई मंजिल नहीं... जिसे हो जाय उसे मुसाफिर कर दे ; प्रेम तो तपस्या है.. जिसे हो जाय उसे फकीर कर दे ; प्रेम गजब है.... जिसे हो जाये उसे अजब कर दे...!
स्त्री के चरित्र का मूल्यांकन, तू क्या करेगा अपराधी! वो तो दर्पण में पुरुष का श्रृंगार है, और जीवन में उसका अभिमान है। सीता के समर्पण का इतिहास है, भार्या होने का स्त्य प्रमाण है, जब अाई बात चरित्र पर, तो दिया धर्म का ज्ञान है।