जो भी देखे कहे कि मैं दीवानी जैसी लगती हूँ
रिश्ते नातों से भी कुछ बेगानी जैसी लगती हूँ
जादू सा छाया है या फिर असर तुम्हारी उल्फ़त का
मैं ख़ुद को अब बिना ताज़ की रानी जैसी लगती हूँ
चाँद सितारे रात चाँदनी सब कुछ ही तो मुझसा है
क्यों कहते हो मैं इक शाम सुहानी जैसी लगती हूँ
करती हूँ मैं हवा से बातें बादल ओढ़ी हुई फिरूँ
शायद मैं परियों की किसी कहानी जैसी लगती हूँ
रुकती नहीं रवानी मेरी दुनिया से अनजानी हूँ
मैं बहती नदिया के कल कल पानी जैसी लगती हूँ
जो तुमने पूछा है तो मैं बतला देती हूँ तुमको
तुमने जो दी थी मैं उसी निशानी जैसी लगती हूँ
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