कैसे बतलाऊं तुमको मैं क्या क्या करता हूँ...
तन्हाई में आँखे बंद कर के मैं तुमको गढ़ता रहता हूँ,
खाली आंखों में मेरी तुमको, मैं रोज भरा करता हूँ!
बस इतना समझ लो, की मैं तुम्हारे लिए ही जीता हूँ,
कभी ख़्वाब, कभी फूल, कभी खार में तुमसे मिलता हूँ!
कैसे बतलाऊं तुमको मैं.....
रोज तुम्हारी यादों में, मैं तुम पर ग़ज़ल नई लिखता हूँ,
पहली ग़ज़ल आज भी, तेरी अमानत समझ के रखता हूँ!
तुमको पाने की हसरत में, मैं हर दर मन्नत करता हूँ,
कभी चाँद, कभी आब, कभी रेत पर नाम लिखता हूँ!
कैसे बतलाऊं तुमको मैं...
कैसे करूँगा मैं तुम्हे इजहार, ये रोज कवायद करता हूँ,
महफूज़ है खत इजहार का जो देने की ख्वाहिश रखता हूँ!
तुम हो इश्क़ पहला और तुमसे इश्क आखिरी करता हूँ!
कभी जीस्त, कभी दिल, कभी रूह से मोहब्बत करता हूँ!
कैसे बतलाऊं तुमको मैं.....
कभी पूछता हूँ तितली से, क्भी गुलाब से पूछता हूँ,
कभी तो मिलेगी इस जहाँ में, उम्मीद मैं यह रखता हूँ!
उम्र का तकाजा होने लगा, बालों में सफेदी आने लगी,
कभी बचपन, कभी जवानी, कभी बुढापे से रश्क करता हूँ!
कैसे बतलाऊं तुमको मैं... _राज सोनी
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