रज़ा-ए रुखसती के मुकम्मल होने से पहले,
नादान-ए दिल को अमन से रूह से रूबरू हो लेने दो,
मुकर्रर वक़्त की बेड़ियों से इन्हें जकड़ने के एहसासात को थोड़ा विराम दो,
आखिर ज़िन्दगी है चार पल की, इसे खुलके जीने में मसरूफ़ हो लेने दो,
व्यर्थ के एहतियात और मायनो को समीकरणों के मायाजाल से निजात दिला दो,
और खुद को वाबस्ता खुद ही से ख़ाकसार होने का असली लुत्फ़ लो....
-