बड़ा ही ख़ूब ये किस्सा हुआ है,
मेरे जैसा तू भी उजड़ा हुआ है।
कभी रौनक थी घर में जिस शजर से
उसी से अब वहाँ साया हुआ है।
नज़र उट्ठी, झुकी बस चल दिए तुम,
भला ये भी कोई, मिलना हुआ है।
करें जो गुफ़्तगू, फ़ारिग लगें हम,
रहें जो चुप कहें, रूठा हुआ है।
नज़र अंदाज करने तुम लगे हो,
चलो ये इल्म भी अच्छा हुआ है।
भला कब तक तेरी यादें सँभालूं,
पलक पर बोझ अब ज़्यादा हुआ है।
असर ना हो ग़ज़ल में आज शायद,
लिखे अब "आरसी" अरसा हुआ है।
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