उसकी ही तरह,
बाहर से शांत हो रही हूँ !
उसकी ही तरह,
अंदर से ख़ाक हो रही हूँ !
उसकी ही तरह,
सवालों से दो चार हो रही हूँ !
अरे डरो मत,
नहीं मैं सुशांत हो रही हूँ !
उसकी ही तरह,
जवाबों से बार बार घिर रही हूँ !
उसकी ही तरह,
ज़िन्दगी से बराबर लड़ रही हूँ !
वो तो आंखों से दिखा देता था,
मैं पलकें झुकाने को बाध्य हो रही !
अरे डरो मत,
नहीं मैं सुशांत हो रही !!
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