इस मोहब्बत के रंग से
वो दूर हैं कहीं,.
तुम उन्हें चाहो,वो भी तुम्हे चाहें
ये जरूरी तो नही।
इश्क़ किया है जब तूने,
तो सितम भी सहेगा तू,और
सितम हो जब इतनी खूबसूरत,
तो सितम को सितम कहना जरूरी नही।
लिख रहा है जो आज तू दिल-ए-अल्फ़ाज़,
उसे महफ़ूज ही रखना जमाने के नज़र से,
थोड़ा मुश्किल होगा धड़कनों को मनाना,
लेकिन बेवजह उन्हें परेशां करना जरूरी तो नही।
है सब्र अगर तुझमे इतना
तो निभाते रहना उम्रभर यूँ ही,
शायद धड़क जाए कभी उनका भी दिल तेरे लिए,
वरना हरदफ़ा इश्क़ बाहों में हो,ये जरूरी तो नही।
आज तेरा मर्ज ही जब मरहम बनने को कोशिश रहा है,
फिर उसी पर ये दर्द देने का इल्जाम जरूरी तो नही।
हाँ माना तू शायर है और वो महफ़िल है तेरी,परंतु,
महफ़िल के चिराग से उनका दिल भी जले,जरूरी तो नही।
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