एक शायर की महफ़िल   (Prashant Sameer)
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Joined 13 March 2019


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Joined 13 March 2019

जबतक चकाचौंध है,
तुम्हे ये मोहब्बत नजर नही आयेगा।
और जिस दिन तुम्हारी उम्र
अपनी ढलान पर होगी,
तब ढूंढना,तुम्हारे करीब आकर
ये मोहब्बत तुम्हे ठुकराएगा।

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मोहब्बत जिंदा है तो पहचान है,वरना मरने के बाद
खुदा भी उस दिल का शनाख़्त नही करता।
और दर बदर भटकने के दौरान ये मालूम होता है,
की हर दहलीज दिल का मकांँ नही होता।

आज वो चीख रहा है,कल खामोश हो जाएगा,
फिर एक मातम में बैठकर मोहब्बत को सजाना।
और खुद को समझाना की अब रुखसत का दौर है,
विदाई के दौरान उसके लिए आसूंँ ना बहाना।

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कुछ आसूंँओं के घुट,तो कुछ बातों का जहर
प्यार में ब-कायदा पीने को दिया जाता है।
भीड़ के आगे अक्सर अपनों को तन्हां छोड़,
ज़िंदगी के मज़े बड़े शौक से लिया जाता है।

सकूंँ की फरमाईश जब जब करो,
रुसवाइयों का आगाज किया जाता है।
और चांँदनी रात के सबनम में प्यार निखरने को जब आए,
फासलों पर फैसले तभी जुबांँ से,नजाने क्यों लिया जाता है।

इसे हाथों की लकीरें कहूंँ या मोहब्बत की विडंबना,
जिससे दूर होकर ही मर मर के जिया जाता है।
और गुज़र जाता है जब ये दौर मोहब्बत का,
अफसोस से बोझिल सांँसों को उसके हस्र पर छोड़ दिया जाता है।

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दिल की दहलीज इतनी खुबसूरत होती है,
की बेगैरतों के लिए लांँघा नही जाता।
प्यार ही एक ऐसी चीज है जो हो जाए,
तो बार बार गैरत मारकर मांँगा नहीं जाता।

कुछ वफ़ा तय करेगी,कुछ वक्त का इंतहां,
क्योंकि ऐसा नहीं होता है कहीं
की मोहब्बत में कदम बढ़ जाए,
और उनका जंँघा नही जाता।

जब ये सब समझ आने लगे सामने वाले को,
तो कश्मकश का पहरा बीच में नही आता।
और बेताबी इतनी हो जाती है इश्क के आगोश में,
की लिबास के साथ एक पल भी रहा नही जाता।

ये जनता हूंँ,ऐसा लिखना मेरे चरित्र पर सवाल करेगा,
लेकिन शायर को अगर इस बात से फर्क पड़ने लगे
फिर प्यार,इश्क,मोहब्बत में महबूब तो दूर की बात है
मुझसे मेरी कलम भी कहेंगी,की मुझसे और वफ़ा किया नहीं जाता।

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कब खत्म होगी
ये ना उम्मीदी की रातें,
कब मुक्कमल होगी
अपनी वो मिलन की रातें 
ये जानते नही
की कब ऐसा मुहूर्त होगा,
की एक चांँद बाहों में
और एक आसमांँ में होगा।
तब वो मंजर
यकीनन अपने चरम पर होगा,
मेरे चांँद को देख
असमांँ के हाथों में दर्पण होगा।
और रही सही रातें
तो ताजूब करने में गुजर जायेगी
की कैसे ये शख्स
फलक से खुबसूरत चांँद को
बाहों में समेटता होगा।

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बादलों का आना जाना तो लगा रहेगा,
दिलकश चांँदनी में चांँद को निखरने दो।
आजमाइशों के शहर में प्यार का पैमाना बस इतना ही रखना,
या बिल्कुल नही या फिर बेतहशा करने दो।

थक गया हूंँ अपनी इस जिंदगी से मैं,
मोहब्बत को अपना आखिरी आसरा कहने दो।
सकून मिलता है मुझे तेरे पहलू में सिमटकर,
जिसका इख्तियार बस मेरे हक़ में रहने दो।

कुछ ख़्वाब थे जो तेरे होने से पूरे हुए,
जिसे हकीकत में तब्दील वक्त को करने दो।
और बरसों पहले जब तेरा हो चुका हूंँ,
मैं तेरा हूंँ,मैं तेरा हूंँ मुझे बस कहने दो।

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सब कहते हैं उम्र बीत गई चलने की जिसकी
बाजार में वो सिक्के खोटे हैं।
परत दर परत धूल के हिजाब बनते रहें,
और दर-बदर फिरते हुए अपने दिल को हम जोते हैं।

तब जाकर एक रोशनी की खिड़की खुली,
उस दिन से एक परी के साथ हम सोते हैं।
और आशियां जब भी मिला उनके दिल में रहने की
तो मालूम हुआ उम्र में उनसे हम छोटे हैं।

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ये दिल💔 छल्ली हुआ,
और तेरे हाथों में कोई औजार नहीं।
ज़ख्म खाएं है तेरे अल्फाजों से
फिर भी तेरे सिवा किसी और पर एतबार नही।

गर तू सोचती होगी यहांँ से रास्ता मुख्तलिफ होगा अपना,
तो सुन ले,इतना जल्द मेरा फैसला बदलने वाला नही।
बरसों के रिश्ते कुछ बुरे वक्त के तिनकों से नही उजड़ा करते,
क्योंकि मोहब्ब्त है ये मोहब्बत मेरा,कोई कारोबार नही।

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संदेह की गुंजाइश जब आने लगे,

तो दूरियांँ बढ़ना लाजमी है।

आफताब की रोशनी जब चांँद पर पड़ने लगे,

रातें चांँदनी होना भी लाजमी है।

एक रोज ठोकर लगी

जब इश्क के उस पहरेदार को,

तब डर गया अपने महबूब को खोने से,

जो इश्क में कमाई हुई उसकी आमदनी है।

सब ठीक हो जायेगा कहती रही दुनिया,

फिर भी अंदर ही अंदर टूटता रहा वो,

क्योंकि भगवान नही है वो,

वो भी एक आदमी है।

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अब हमारा मिलन होगा की नही,ये मालूम नही,

तुम करो ना करो अब मुझसे इश्क दोबारा

मेरा दिल अब तेरे इश्क से महरूम नही।

जो वक्त गुजारे है अब तलक तेरे नाम से,

उसके सिवा जिंदगी है भी की नही,मालूम नही।

मंजिल दिख रहा है मुझे करीब

और सच पूछो तो रास्ता मालूम नही।

इन पथरीले रास्तों पर कबतक चलता रहूंगा,

पैरो में चप्पल है भी की नही,ये मालूम नही।

बस उम्मीद का एक दौर से गुजर रहा है दिल ,

देखना ये है की पहले दिल टूटता है या उम्मीद

ये तो खुदा ही जाने,मुझे तो बस मालूम नही।

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