25 FEB 2018 AT 4:44

गुल-ए-दिल से निकलती है , फज़ा में घुलती रहती है।
मुहब्बत एक खुशबू है, हमेशा साथ चलती है।

लवों का ये तबस्सुम है, मक़सद-ए-जिस्त-ए-आदम है।
यही सजदों में बसती है , यही जंगें कराती है ।

मुहब्बत चांद सी रौशन, मुहब्बत रात सी बेरंग।
मुहब्बत साज़-व-सरगम है , दिल-ए-आशिक में बजती है।

है वर्ग-ए-चश्म पर खिलते सुनहरी ओस के मोती।
कभी मदहोश करती है जो मय में ये बदलती है ।

शब-ए-हिज़रां की बेताबी , सुकूत-ए-सहर-ए-सहरा भी।
लकीर-ए-नूर के मानिंद, रक़्स कोहसारों पे करती है।

- © Munkar (منکر)