पहली मोहब्बत
चुप चुप सी रहती है,
झट से फिर हँसती है
उसकी मुस्कुराहट मेरा नूर है
और मेरी चाहत है वो
कैसे भूल जाऊं उसे भला,
मेरी तो आदत है वो....
चाय के बागानो सी महकती जुल्फें हैं उसकी जो
शरबत में चीनी सी मिठास उसके होठों की
प्यार उससे करता हूं मैं बहुत मगर
कह पाऊँ जब उसकी शर्मो है की इजाज़त तो हो
कैसे भूलाऊं उसे भला, मेरी तो आदत है वो....
रिमझिम सी बरस्ती है, फुहार सी ठंडक ले
सर्दी में गुनगुनी चाय सी गर्माहट दे
बसंत की आभा में खिला एक गुलाब है वो
और मेरे जामों की गहराई में भरी शराब है वो
क्या करूँ मेरी नजर में खुदा की मुझपर,
इक इबादत है वो
कैसे भूल जाऊं उसे भला, मेरी तो आदत है वो....
अफसोस ये रहता है, दिल मे सदा इक कसक लिए
कह पाया न मैं उससे, बात लबों में मेरे लिए
हो जाती जो थोड़ी सी लम्हों से शरारत कभी
या हो जाती एक बारिश सावन में शराबों की
कैसे में समझ पाऊँ भला, मेरे पास नहीं है अब वो
कैसे दिल को समझाऊं भला, किसी और कि अब अमानत है वो
दिल ये पागल सा बस इतना जनता है, कि मेरी पहली मोहब्बत है वो
कैसे भूल जाऊं उसे भला, मेरी तो आदत है वो....
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