बाहर के तिमिर से तेज़ है, बलवान वह सहज ही हर अंधकार चीरने को तत्पर है, न भय है किसी षड्यंत्र का न ही किसी विरोध का संशय है, आप ही वीरांगना है वह सुंदर जो ज्ञान के दीप को रखती काव्य में सहेजकर है।
कुछ कहते नहीं, दिल में उठता है एक तूफान सा मगर दिखाते हम नहीं, समझते हैं जो नासमझ हमें उनकी हर सांस का राज़ हमें पता है, चुप हैं हम बस पर योद्धा हमें भी कहा जाता है।
हमारी ख़ामोशी, कमज़ोरी नहीं है हमारी ये चुप्पी, साधना है ध्यान है, आप ही आपसे मिलने की ये पहचान है, एकांत की आत्मा है शांति में गुनगुनाती प्रार्थना है।
किस दिशा तेरा घर है, बता भी दो ओ मेघराज, तेरा बसेरा किधर है, देखो वह प्यासी धरा अब तुम्हारे लिए पुष्प बिछाती है तुम्हारे स्वागत को आतुर आँखें राग मल्हार गाती हैं, अब तो पहुँचों तृप्त करने देखो लाखों है द्वार पर तुम्हारे लिए व्याकुल खड़े।
साथ तेरा खोजते हुए खुद को पा गए हैं, लाख ज़ुल्म अब करे ये ज़माना भी तब भी छूटती नहीं अपने अस्तित्व की तस्वीर, बड़ी मुद्दतों के बाद लाखों मन्नतों से आपने ही आपको पाया है, बिखरेंगे अब नहीं हम ये वादा हमने खुदसे करके निभाना है।