एक दिन वो मेरे पास से कुछ यूं गुजारी थी। मुझे बस उसके कानों की बाली दिखी थी।। मैं उसकी तलाश में लगा रहा, उस दिन तुम्हारी गली से गुजर रहा था। तो, तुम्हारे कानों में भी वही बाली दिखी थी।।
तुम्हारा सब कुछ तो मान लेता हूं। दरिया को समंदर कहो तो मान लेता हूं। तुम कहते हो तुम्हारे दरिया में शोर बहुत हैं। ये सुन मैं मेरा समंदर शांत कर लेता हूं।।
सुकून ढूंढने का सिलसिला कुछ यूं चल रहा है। मानो ये सुकून मेरे सामने ही चल रहा है।। अगर थोड़ा रुक जाता सुकून तो पहुंच जाता मैं। इस तरह मेरी जिंदगी का सफर निकल रहा है।।