विवेक कवीश्वर   (Vivek Kavishwar)
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Joined 5 October 2018


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क्यों दुआ में दूं तुम्हें 
मैं जिंदगी लंबी,
सुकून का एक दिन भी जब मुहाल हो यहां।
....(विवेक)

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सब ही बांचें भाष्य को;
मौन न बांचे कोय,
नयन किसी बदरी घिरे;
जियरा कौन भिगोय।
....(विवेक)

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परवाह होना; ख़याल करना;
गुफ़्तगू का शौक रखना,
बस इन्ही बातों से लगे;
वो इन्सा कोई अपना सा है।
....(विवेक)

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बीत गया था जो कल मेरा
फिर से ज़िंदा हो गया,
यादों की जो  पूंजी थी
मैं उसका जाया हो गया।
....(विवेक)

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कितना बढ़िया भोज था;
रोटी चटनी प्याज़,
भोग मिलें छप्पन मगर;
मज़ा ना आए आज।
....(विवेक)😔

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ऐ मेरे दोस्त कोई तो बात है
तुझमें; अब भी,
यकबयक देख कर तुझको;  
ये नौबहार आ गयी। 
....(विवेक)

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गुज़रे मेरे शहर से;
मुझको ख़बर नहीं, 
बादल बने हैं गोया;
मुझ पर नज़र नही।
....(विवेक)

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वक़्त की फ़ितरत है
बदलते रहना,
और हम उसे हल्के में
लिए जाते हैं।
....(विवेक)

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गुल-ए-गुलाब को मैं आज
एक गुलाब दे दूं,
हर पत्ती बयां करेगी
कुछ अल्फ़ाज़ मेरे।
....(विवेक)

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पौधा रोपा प्रेम का;
दिन-दिन सूखा जाय,
संवादों का जल नहीं;
नेह कहां उपजाय।
....(विवेक)

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