vinayak darshan   (✍ दर्शन)
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Joined 13 July 2019


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27 MAR 2023 AT 23:47

जब भी तुम्हारी नजर से खुद देखता हूँ तो ऐसा लगता है कितना कुछ गुम है मुझमे, जैसे गुम हैं कई अल्फाज़ जिन्हें मैं कभी नहीं लाता अपने होठों तक, गुम हैं कई ख्वाब जो मैंने बुने ही नहीं, शायद मुझे लगा उन्हें देखने का भी हक नहीं है मुझे, गुम था ये एहसास कि जिस कमरे में मैं सोता हूँ वो इतना खूबसूरत है, मेरे किताबों की आलमारी जहां तुम कुछ देर रुक जाते हो वहाँ मैं अब घन्टों बैठकर किताबें पढ़ता हूँ  और वो टी-शर्ट जो तुमने पहनी थी...क्या तुम वो अपने घर लेकर चले गए?..चोर.

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27 MAR 2023 AT 23:22

जब भी तुम्हारी नजर से खुद को हूँ तो ऐसा लगता है कितना कुछ गुम है मुझमे, जैसे गुम हैं कई अल्फाज़ जिन्हें मैं कभी नहीं लाता अपने होठों तक, गुम हैं कई ख्वाब जो मैंने बुने ही नहीं, शायद मुझे लगा उन्हें देखने का भी हक नहीं है मुझे, गुम था ये एहसास कि जिस कमरे में मैं सोता हूँ वो इतना खूबसूरत है, मेरे किताबों की आलमारी जहां तुम कुछ देर रुक जाते हो वहाँ मैं अब घन्टों बैठकर किताबें पढ़ता हूँ और वो टी-शर्ट जो तुमने पहनी थी...क्या तुम वो अपने घर लेकर चले गए?..चोर.

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24 FEB 2023 AT 3:02

सर्दी की कोई सुबह थी शायद
एक पार्क जहां हल्की मगर जिंदगी से भरी घास
पर गुनगुनाते हुए कुछ लोग न जाने क्या ढूँढ रहे थे
ये जानते हुए भी कि जो खोया है वो नहीं मिलने वाला
खासकर इस जगह पर तो नहीं, जहां धूप आती है
जहां चिडियों का झुंड है और कुछ आवारा कुत्ते
सारे अजनबी चेहरों में कोई क्या ढूंढ पाएगा भला
कुछ भागते लड़के और लड़कियां, फोन,डांस, क्लिक
वन टू थ्री स्टार्ट I ओए वीडियो चल रहा पागल !
जिंदगी के तमाम पड़ावों से गुज़री हुई जिंदगियों
में खुद को और तुम्हें ढूंढने की मेरी कोशिश
कितनी अजीब है, हाउ टू लिव फुलेस्ट??
अचानक उसने कहा तुम कुछ कहते क्यूँ नहीं
उसकी आँखों में न जाने क्या ठहर आया था
यूँ लगा जैसे उसने देर से नजरें छुपाकर रखी हो
शायद यही वो बजह थी जो हम यहाँ थे
शायद ऐसी कोई मिलती जुलती बजह
हर किसी की होगी, मगर मैं यकीं से नहीं कह सकता!

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12 APR 2022 AT 20:50

यहाँ शहर में

कई रास्ते हैं अनजाने से यहाँ शहर में
धूप कितनी तेज होती है दोपहर में
तुम्हारी कही सारी बातें लिख रखी है मैंने
मैं जानता था कुछ भूल जाऊँगा सफर में I

पेड़ पौधे और नहर थोड़े से हैं शहर में
लाल पीली गाड़ियां हैं हर एक घर में
ए सी कूलर में यहाँ बँध जाती है जिंदगी
गाँव मुझको याद आता है शहर में I

रात में तारे यहां गायब हैं शहर में
धूल धुओं से भरे छत हर नजर में
कोलाहल बाजार का है दूर तक फैला हुआ
और हम यादों में सिमटे हैं शहर में I
:- दर्शन






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12 APR 2022 AT 1:05

मैं अक्सर व्हाटस अप खोल कर उसकी नयी अपडेट हुई पिक्चर देख लेता हूँ I अब वह पहले से ज्यादा सुन्दर लगती है I सोचता हूं ऐसा क्या हो गया महज एक दो महीने में I कैसे उसकी यादों से भी ज्यादा सुंदर उसका चेहरा हो गया?  कैसे मैं भूल गया कि उसकी बातें कितनी मीठी थी? मैं लाइब्रेरी से निकलते ही भाग निकलता था पार्क की ओर जहां वो मेरा इंतजार कर रही होती I जब तक उसके मुँह से दो चार तारीफें और दस बारह उलाहने ना सुनता तब अजीब ही दिन गुजरता I  मेरा सोच लेना कि उसने मुझे भुला दिया महज एक भोलापन है क्यूंकि वो मुझे तब तक नहीं भूल पाएगी जब तक मैं उसे नहीं भूल जाता I मेरा उसे भूल जाना समंदर में टाइटैनिक फिल्म के हीरो के डूब जाने जैसा है जिसकी याद लिए वो बूढ़ी हिरोइन एक जनम काट लेती है I मैं उसकी तस्वीर देख कर बूढ़ा तो बिल्कुल नहीं होना चाहता I अब खुद को याद दिलाता रहता हूं कि उसका सुंदर लगना उसकी बिखरी हुई तमाम यादें हैं जो मेरे मन में गहरी बैठी है और जिसमे गहरा डूबा हुआ है मेरे सुकून का वो हिस्सा जो समय- समय पर उसे सुंदर बना देता है I  
                           :- दर्शन

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9 APR 2022 AT 1:35

सोचता हूँ जब तुमसे मिलूंगा तो पूछूँगा  कि क्या सब फिर से पहले जैसा हो सकता है?  नहीं हो सकता ना? मैं जानते हुए भी क्यूँ  पूछता हूं? तुम्हारे जाने के बाद मैंने कभी तुम्हारा जिक्र अपनी किसी भी कविता या कहानी में नहीं किया, शायद तुम बीच की कड़ी थी जो मैं किसी भी एक फ्रेम में फिट कर देने में सक्षम नहीं था I मेरे मन में जितनी भी हलचल तुम्हारी यादों से होती है मैं उन्हें कहीं दर्ज नहीं करता क्यूंकि मैं इतना तो जानता हूं कि सब कुछ एक साथ तो नहीं कह पाऊंगा, इसलिए मैंने सब जैसे अवचेतन मन पर छोड़ दिया है I आखिर में वही तो " मैं " हूं जिसमें तुमने कभी एक लापरवाह इंसान को देखा जिसने कभी अपनी परवाह तक न की, जिसने मोहब्बत में कोई कसर न छोड़ी या फिर जिसकी मोहब्बत कभी कोई असर न छोड़ सकी I इतना सब कुछ जानते हुए भी मैं पूछूँगा तुमसे कि क्या सब कुछ पहले जैसा हो सकता है?? ये जानते हुए कि इसका ज़वाब "नहीं " है I

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7 APR 2022 AT 1:12

भूल चुका जिंदगी में घटित कई यादें
जो मेरे लिए ज़रूरी थी I

बचपन की यादें, महज मासूमियत हैं
मासूमियत खोना यादों का ही खोना है
खोने का रोना आंखें कभी नहीं रोती
दिल के हिस्से भेज देती है
जिसने किया वो भुगते
दिल खूब रोता है जार जार
दिल को दुःख है आंखों ने कभी
उसे अपना नहीं समझा
कभी एक बूंद पानी तक न पूछा
अनदेखा अपनों को करना
कैसी दरारे बना देता है
दिल बुझा सा डूबा रहा
आँखें बस देखती रहती है देर तक
फिर उन सब को याद बना देती है

यादें बदल चुकी हैं
उनमें खोने से ज्यादा रोना याद है
आंखों ने जरा मेहरबानी की
और मिला दी एक बूंद पानी की
अब सब धुँधला है, तुम भी!!

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7 APR 2022 AT 1:07

मैं खालीपन में क्या भरता हूं

गुस्सा झुंझलाहट चिड़चिड़ापन
बदतमीजी लापरवाही आवारापन
टूटती बिखरती भावनाओं को संभाले
बीते बेजुबान हुए एक दशक को खंगाले
आंसुओं से लड़ता, घुट घुट कर मरता
मुट्ठी भर भविष्य का डर भरता हूं
मैं खालीपन में क्या करता हूं?

उम्मीद का ये दीप जैसे हवा में जलता है
लौ को डर है तेज उसका ब्यर्थ पिघलता है
बाती के सारे किस्से खाक में मिल जाते हैं
जिंदगी काली राख संग हवा में गुम जाते हैं
छोटी छोटी चिनगारी को
जेबों में भर कर रखता हूं
मैं खालीपन में क्या करता हूं?

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7 APR 2022 AT 0:52

उसने जब भी मुस्करा के मुझे अपना कहा
मेरी नींद खुली और सबने उसे सपना कहा

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10 JAN 2022 AT 13:35

हिंदी हिंदुस्तान की वो नदी है जो "आत्मा" से निकलती है और "परमात्मा" में समा जाती है।

:- दर्शन

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