भटकते भटकते थक गया अब मुसाफिर
खुद ही खुद में रहने वाली एक कैद चाहता है
कड़वाहट भरी थी उसकी जो सोच में भयंकर
छोड़ कर उसे अब वो मीठी सोच शहद चाहता है
सभी ने उसे नचाया अब तक अपने अपने हिसाब से
उन सबको दर किनार करने वाले राज भेद चाहता है
करे दुआ अब अमन की हाथ में जो लिए था खंजर
हर गुस्ताखी के लिए अब वो माफी और खेद चाहता है
जो राह में मिली थी, मुश्किलों को है मात उसने दे दी
इस लड़ाई में उसको मिली चोटें भरे ऐसा एक वैद्य चाहता है
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