Vaibhav Sengupta  
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Joined 11 May 2017


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29 NOV 2020 AT 1:37

Is safed libas mei aaj,
Teri yaadon ko chingari dene aaya hu.

Jo lamhe ek khwahish bane reh gaye,
Un lamho ko ek aakhri baar jeene aaya hu.

Kisi machis ki tiliyo se jal uthe,
Ye un lasho ki chitaye nahi.

In yaadon ke har kabr pe teri mitti padhe,
Mai zamane ko tere is shamshan ki kahani batlane aaya hu.

Is safed libas mei aaj,
Teri yaadon ko chingari dene aaya hu.

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8 SEP 2020 AT 16:03

हम सबके अपने-अपने मुखौटे हैं,
हम सबके पास कई किरदार हैं।

जिस चेहरे को दुनिया पढ़ले,
उस पात्र की हार हैं।

अपनी असली आंखें उस आयीने में ना झलके,
सिर्फ इस बेईमानी से ईमान हैं।

जो वो रूप पढ़के भी हमसे मोहब्बत संजोग ले,
बस वही हमारे जान का हकदार हैं।

हम सबके अपने-अपने मुखौटे हैं,
हम सबके पास कई किरदार हैं।

- वैभव सेनगुप्त

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6 SEP 2020 AT 12:36

तस्वीरों में कैद हो जाऊ!
अब वो मंज़ूर नहीं।
जो उनको तलाश होगी एक झलक की,
तो हर रास्ते हमें खोजते आयेंगे।

हर चढ़...हर घड़ी, एक मुद्दत थामे रखना!
अब वो मंज़ूर नहीं।
जो उनको अगर परवाह सताएगी,
तो हर पल हम सोचते आयेंगे।

उनके इंतज़ार में अश्के दबाए बैठना!
अब वो मंज़ूर नहीं।
जो उनको इस इंतज़ार की कीमत होगी,
तो वो हमारे आंसू भी पोछने आयेंगे।

उनके गुस्ताखियों को नादानी के चादर से रोज़ ओढूं!
अब वो मंज़ूर नहीं।
जो उनको आना गवारा ना हो,
तो हम यह कहानी उनके बिना ही संजोगते जायेगे।

तस्वीरों में कैद हो जाऊ!
अब वो मंज़ूर नहीं।
जो उनको तलाश होगी एक झलक की,
तो हर रास्ते हमें खोजते आयेंगे।

- वैभव सेनगुप्त

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4 SEP 2020 AT 14:01

यह सिलवटें आज भी तेरी खुशबू से रोज़ मिलाती हैं,
शायद इसलिए ये चदरी खुद से संजोगी है मैने।

वो बीती घड़ी अपनी बाहों में रोज़ बुलाती हैं,
शायद इसलिए ये बेकद्री खुद से संयोगी है मैने।

इस चांद तले यू सिमट के..तेरी सिसक मुझे रोज़ सुलाती हैं,
शायद इसलिए तुझे पाने की खुदगर्ज़ी खुद से भोगी है मैने।

यह सिलवटें आज भी तेरी खुशबू से रोज़ मिलाती हैं,
शायद इसलिए ये चदरी खुद से संजोगी है मैने।

- वैभव सेनगुप्त

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29 AUG 2020 AT 14:22

जिस बक्से में यादें समेट रखे थे,
उस बक्से में अब सिर्फ राख बाकी हैं।

अभी इस मन को भी जलना थोड़ा रह गया हैं,
कहीं अंदर दबी एक आग बाकी हैं।

हर लौ के साथ कहीं तुम भी तो जले होगें।

तेरे हिस्से की राख की खुशबू...
मेरे हिस्से के हवाओं में समा जाए...
बस तुझसे इतना ही मिल जाने की फिराक बाकी हैं।

जिस बक्से में यादें समेट रखे थे,
उस बक्से में अब सिर्फ राख बाकी हैं।

- वैभव सेनगुप्त

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22 AUG 2020 AT 16:26

वो जो रुह पे जा चुभे,
तेरे ऐसे भाल का आघात हूं।

कई अरमानों की शमशाने समेटी है मैने,
खुद में एक जीता-जाता शमशानघाट हूं।

हर उस बेतर्क बाज़ियो का,
तेरी मुझसे जीती हुई हर उस बाज़ी का मात हूं।

कई खोये हुए लम्हों की परवाह समेटे,
तेरी उस बेपरवाही का सौगात हूं।

हर फेर, हर घड़ी, हर पल में घुटता हुआ,
तेरी हर सुनहरी सुबह की एक काली अंधेरी रात हूं।

वो जो रुह पे जा चुभे,
तेरे ऐसे भाल का आघात हूं।

- वैभव सेनगुप्त

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15 AUG 2020 AT 14:06

उसे अपने मज़हब के ज़ंजीरों की,
इबादत रही होगी।
तभी उसे आज़ाद होना,
गवारा नहीं था।

इस सियासत ने सबको धर्म की बेड़ियां,
पहनाने की चाहत की होगी।
बेशक यह देश मेरा हैं,
पर वैसा मज़हबी देशप्रेम हमारा नहीं था।

- वैभव सेनगुप्त

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10 AUG 2020 AT 21:50

बहुत बातें सजाएं बैठे हैं,
बस एक बार कह जाने को।

बहुत अश्क दबाए बैठे हैं,
बस एक बार बह जाने दो।

कहीं कुछ अभी जताना बाकी रह गया हैं।

शायद इसीलिए कहीं कुछ छुपाए बैठे हैं,
बस एक बार तुझे सह जाने को।

बहुत बातें सजाएं बैठे हैं,
बस एक बार कह जाने को।

- वैभव सेनगुप्त

Bahut batei sajae bethe hai,
Bs ek bar keh jaane ko.

Bahut ashk dabae bethe hai,
Bs ek baar beh jaane do.

Kahi kuch abhi jatana baaki reh gaya hai.

Shayad islia kahi kuch chupae bethe hai,
Bs ek baar tujhe seh jaane ko.

Bahut batei sajae bethe hai,
Bus ek bar keh jaane ko.

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5 AUG 2020 AT 13:11

Wo kuch साल the mere,

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25 JUL 2020 AT 19:53

आज सदियों बाद,
एक खोई हुई आवाज़ से मुलाकात हुईं।
आज सदियों बाद,
वो चांदनी भारी रात हुईं।

आज सदियों बाद,
हमारे आसमान से उनके नाम की बरसात हुईं।
आज सदियों बाद,
उनसे हमारी बात हुईं।

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